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टीके की किल्लत पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने किया सवाल- क्या वैक्सीन की दूसरी डोज पाना लोगों का मौलिक अधिकार नहीं है?

by Sneha Shukla

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य में कोरोना वैक्सीन की किल्लत और लोगों को दूसरी खुराक मिलने में हो रही देरी को लेकर सहमति व्यक्त की है। चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि राज्य में सिर्फ 11 लाख वैक्सीन बची है जबकि टीके की दूसरी खुराक के लिए 31 लाख लोग कतार में हैं। हाई कोर्ट ने टीके की भारी कमी को देखते हुए सवाल किया कि क्या वैक्सीन की दूसरी खुराक लेना मौलिक अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया (एएसजी) ऐश्वर्य भाटी से पूछा, ‘आप यह फासला कितना दूर करेंगे?’ कोर्ट ने सरकार से भी यह जानना चाहा कि वैक्सीन की दूसरी खुराक समय पर न लेने के क्या परिणाम हो सकते हैं। कोर्ट ने पूछा कि अनुच्छेद 21 के तहत समय सीमा के अंदर कोरोना टीके की दूसरी खुराक लेना लोगों का मौलिक अधिकार नहीं है?

एएसजी ने कोर्ट से कहा कि तय समय सीमा के बाद भी वैक्सीन ली जा सकती है या नहीं, इसको लेकर एक कोर टीम अध्ययन कर रही है और दो दिनों में वह रिपोर्ट सौंपेगी।

इस टॉपर ने कहा, ‘ये सब बहाने हैं जो हमें बताए जा रहे हैं। आप बताएं कि आप टीके की कमी कितनी दूर करेंगे। क्या ज्यादा से ज्यादा लोगों का इम्यूनिटी पाना जरूरी नहीं है? ‘

एएसजी ने बेंच को बताया कि राज्यों को यह सुझाव दिया गया है कि वे 45 साल से अधिक आयुवर्ग के उन लोगों को प्रमुखता दें जो टीके की दूसरी खुराक लेने वाले हैं। उन्होंने कहा कि राज्यों को बताया गया है कि केंद्र की ओर से आवंटित 70 प्रति टीके सेक डोज दिए जाने में इस्तेमाल होना चाहिए।

बेंच ने कहा, ‘आपके मंत्रियों को लोगों के सामने सच लाना चाहिए। लोगों के बीच अलग-अलग बयानबाजी न करें। उपलब्ध वैक्सीन का डेटा वेबसाइट पर डालें। ‘

बता दें कि कर्नाटक सरकार ने बुधवार को 18 से 44 साल के लोगों के लिए अस्थायी तौर पर टीकाकरण रोक दिया था।

एक अन्य आदेश में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सभी उद्योगों को 24 घंटे के अंदर कोरोना जांच रिपोर्ट देने को कहा है। कोर्ट ने यह निर्देश बुधवार को अदालत के एक कर्मचारी की मौत के बाद दिए हैं। इस कर्मचारी ने 10 मई को जांच करवाई थी लेकिन 12 मई तक भी उसकी रिपोर्ट नहीं आई थी।

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