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बढ़ते अंतर के बीच लॉकडाउन लगना भी तय है। इसलिए यहां रहने से बेहतर है कि घर वापस जाएं। रजनीकांत मुंबई के एक मॉल में काम करते हैं। उनकी तरह ऐसे हजारों प्रवासी हैं जो पिछले कोरोना काल के कड़े अनुभव को देखते हुए लॉकडाउन लगने से पहले गांव पहुंचने की जद्दोजहद में लगे हैं।
बोरिवली स्थित कंपनी के काम करने वाले नवाब शेख कहते हैं कि लॉकडाउन में कोई परेशानी मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए लोग गांव जा रहे हैं। मझगाँव में रहने वाले आजमगढ़ के मूल निवासी मैकेनिक शकील अहमद भी टिकट की कतार में लगे हुए हैं। कंस्ट्रक्शन में काम करने वाले राजू मिस्त्री का कहना है कि कंस्ट्रक्शन का काम शुरू है लेकिन दुकानें बंद हैं। इसलिए गांव जा रहा है।
इस तरह मुंबई से सटे थाने, देवी मुंबई और पालघर जिले के बोइसर से मजदूरों के अलावा पुणे के चकन इंडस्ट्रियल क्षेत्र से भी मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ है। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मुंबई सहित राज्य के अन्य शहरों से प्रवासी मजदूरों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें सामने आई थीं। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसे कोई सीख नहीं ली। अब हालत यह हो गई है कि जो दुबारा आया वे भी गांव का हिस्सा हैं।
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