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पहले भी वापस लिया गया है छोटी ब्याज दरों में कटौती का फैसला

by Sneha Shukla

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केंद्र सरकार द्वारा छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती का फैसला वापस लेने का यह पहला मामला नहीं है। पांच साल पहले भी इसे वापस लिया गया था और उस वक्त भी मोदी सरकार ही सत्ता में थी।

सरकार ने 16 मार्च 2016 को छोटी बचत योजनाओं में बड़ी कटौती की घोषणा की थी। उस समय भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और असम में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इन योजनाओं में एक से लेकर 1.5 प्रतिशत तक की कमी की गई थी।

इस कटौती की गणना 2011 में पेश की गई है गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के अनुरूप वित्त मंत्रालय ने की थी। हालांकि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इतने बड़े फैसले की उन्हें पूर्व सूचना न होने पर प्रकरण आपत्ति जताई थी और अगले ही दिन उन्होंने कई योजनाओं की ब्याज दरों में की गई कटौती को वापस ले लिया था।

18 मार्च को एक अन्य अधिसूचना जारी कर नई ब्याज दरों की घोषणा की गई थी। ये बचत खाते की ब्याज दरों में कटौती नहीं की गई थी जबकि एक वर्ष के सावधि जमा की दर 8.4 प्रतिशत से भाकर पर 7.1 कर दी गई थी और पीपीएफ की ब्याज दर 8.7 से घटकर 8.1 की गई थी।

इसी घटना के बाद वित्त मंत्रालय में एक अघोषित नियम बना दिया गया था कि छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती की घोषणा पर वित्त मंत्री की सहमति होनी चाहिए।

गोपीनाथ समिति तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 13 वें वित्तीय आयोग की सिफारिशों के अनुरूप 8 जुलाई 2010 को छोटी बचत योजनाओं में सुधार के लिए बनाई थी।

रिज़र्व बैंक की तत्कालीन डिप्टी गवर्नर सरकार गोपीनाथ के नेतृत्व में बनी इस समिति में वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव शक्तिकांत दास (जो अब आरबीआई के गवर्नर हैं), स्टेट बैंक के एमडी आर श्रीधरन, फ़ाकी के सेक्रेटरी जनरल राजीव कुमार, वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार अनिल बिसेन के अलावा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के वित्त सचिव सुधीर श्रीवास्तव और सीएम बछावत शामिल थे।

इसी समिति द्वारा बनाए फॉर्मूले से ही छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों की गणना की जाती है। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार 2004 से 2014 के बीच छोटी बचत योजनाओं की दरों में केवल तीन बार बदलाव किए गए जबकि उसके बाद से अभी तक इनमें 21 बार बदलाव किए जा चुके हैं। अब हर तिमाही इनकी समीक्षा की जाती है।

विस्तार

केंद्र सरकार द्वारा छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती का फैसला वापस लेने का यह पहला मामला नहीं है। पांच साल पहले भी इसे वापस लिया गया था और उस वक्त भी मोदी सरकार ही सत्ता में थी।

सरकार ने 16 मार्च 2016 को छोटी बचत योजनाओं में बड़ी कटौती की घोषणा की थी। उस समय भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और असम में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इन योजनाओं में एक से लेकर 1.5 प्रतिशत तक की कमी की गई थी।

इस कटौती की गणना 2011 में पेश की गई है गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के अनुरूप वित्त मंत्रालय ने की थी। हालांकि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इतने बड़े फैसले की उन्हें पूर्व सूचना न होने पर प्रकरण आपत्ति जताई थी और अगले ही दिन उन्होंने कई योजनाओं की ब्याज दरों में की गई कटौती को वापस ले लिया था।

18 मार्च को एक अन्य अधिसूचना जारी कर नई ब्याज दरों की घोषणा की गई थी। ये बचत खाते की ब्याज दरों में कटौती नहीं की गई थी जबकि एक वर्ष के सावधि जमा की दर 8.4 प्रतिशत से भाकर पर 7.1 कर दी गई थी और पीपीएफ की ब्याज दर 8.7 से घटकर 8.1 की गई थी।

इसी घटना के बाद वित्त मंत्रालय में एक अघोषित नियम बना दिया गया था कि छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती की घोषणा पर वित्त मंत्री की सहमति होनी चाहिए।

गोपीनाथ समिति तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 13 वें वित्तीय आयोग की सिफारिशों के अनुरूप 8 जुलाई 2010 को छोटी बचत योजनाओं में सुधार के लिए बनाई थी।

रिज़र्व बैंक की तत्कालीन डिप्टी गवर्नर सरकार गोपीनाथ के नेतृत्व में बनी इस समिति में वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव शक्तिकांत दास (जो अब आरबीआई के गवर्नर हैं), स्टेट बैंक के एमडी आर श्रीधरन, फ़ाकी के सेक्रेटरी जनरल राजीव कुमार, वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार अनिल बिसेन के अलावा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के वित्त सचिव सुधीर श्रीवास्तव और सीएम बछावत शामिल थे।

इसी समिति द्वारा बनाए फॉर्मूले से ही छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों की गणना की जाती है। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार 2004 से 2014 के बीच छोटी बचत योजनाओं की दरों में केवल तीन बार बदलाव किए गए जबकि उसके बाद से अभी तक इनमें 21 बार बदलाव किए जा चुके हैं। अब हर तिमाही इनकी समीक्षा की जाती है।



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