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सुप्रीम कोर्ट

पेशेवर शिक्षा तक पहुंच बनाना सरकार का दायित्व, अहसान नहीं: सुप्रीम कोर्ट 

by Sneha Shukla

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।

द्वारा प्रकाशित: अमित मंडल
अपडेटेड थू, 15 अप्रैल 2021 05:15 AM IST

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर स्तर पर शिक्षा तक पहुंच बनाना राज्य सरकार का दायित्व है। उच्च (व्यावसायिक) शिक्षा पाना भले ही मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन इस तक पहुंच बनाना सरकारी ‘अहसान’ भी नहीं है। सरकार का यह दायित्व उन छात्रों के लिए कहीं ज्यादा महत्व रखता है, जिनकी गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच जाति, वर्ग, लिंग, धर्म और भौगोलिक क्षेत्र के कारण बाधित होती है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने लद्दाख के छात्रों फरजाना के पास और मोहम्मद मेहदी वजीरी की याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। दोनों छात्रों ने केंद्रीय पूल में चुना जाने के बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिल सुनिश्चित करने की गुहार लगाई थी। पीठ ने दोनों छात्रों को दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, उच्च शिक्षा हासिल करने का अधिकार संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं है, लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि उच्च शिक्षा तक सरकार की उदारता नहीं है। हर स्तर तक शिक्षा तक पहुंच मुहैया करना सरकार का दायित्व है।

क्या मामला है
नवंबर, 2000 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय पूल से लद्दाख के लिए लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में एक-एक सीट आवंटित की थी। इस नीति के अनुसार लद्दाख प्रशासन ने इन दोनों मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए याचिकाकर्ताओं को नामित किया था। बावजूद इसके इन दोनों को प्रवेश नहीं दिया गया था। जिसके बाद दोनों छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

अधिश के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त
छात्रों की ओर से पेश दलीलों से संतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को संबंधित कॉलेजों में प्रवेश देने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि भर्ती की जाने की एक सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। शीर्ष अदालत ने एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति का भी सुझाव दिया है जो यह सुनिश्चित करेगा कि केंद्रीय पूल सीटों के तहत नामांकित छात्रों को भर्ती कराया जाए।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर स्तर पर शिक्षा तक पहुंच बनाना राज्य सरकार का दायित्व है। उच्च (व्यावसायिक) शिक्षा पाना भले ही मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन इस तक पहुंच बनाना सरकारी ‘अहसान’ भी नहीं है। सरकार का यह दायित्व उन छात्रों के लिए कहीं ज्यादा महत्व रखता है, जिनकी गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच जाति, वर्ग, लिंग, धर्म और भौगोलिक क्षेत्र के कारण बाधित होती है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने लद्दाख के छात्रों फरजाना के पास और मोहम्मद मेहदी वजीरी की याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। दोनों छात्रों ने केंद्रीय पूल में चुना जाने के बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिल सुनिश्चित करने की गुहार लगाई थी। पीठ ने दोनों छात्रों को दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, उच्च शिक्षा हासिल करने का अधिकार संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं है, लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि उच्च शिक्षा तक सरकार की उदारता नहीं है। हर स्तर तक शिक्षा तक पहुंच मुहैया करना सरकार का दायित्व है।

क्या मामला है

नवंबर, 2000 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय पूल से लद्दाख के लिए लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में एक-एक सीट आवंटित की थी। इस नीति के अनुसार लद्दाख प्रशासन ने इन दोनों मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए याचिकाकर्ताओं को नामित किया था। बावजूद इसके इन दोनों को प्रवेश नहीं दिया गया था। जिसके बाद दोनों छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

अधिश के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त

छात्रों की ओर से पेश दलीलों से संतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को संबंधित कॉलेजों में प्रवेश देने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि भर्ती की जाने की एक सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। शीर्ष अदालत ने एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति का भी सुझाव दिया है जो यह सुनिश्चित करेगा कि केंद्रीय पूल सीटों के तहत नामांकित छात्रों को भर्ती कराया जाए।

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