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बंगाल में नहीं दिखा बीजेपी का कमाल, जानें- किन 5 वजहों से पिछड़ गई भगवा पार्टी

by Sneha Shukla

पश्चिम बंगाल के चुनाव में टीएमसी हैट्रिक लगाती दिख रही है। ममता बनर्जी की पार्टी अब तक 192 सीटों पर बढ़त के साथ स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने की ओर है, जबकि ‘अबकी बार, 200 पार’ का नारा देने वाली बीजेपी 100 के अंदर ही सिमटती दिख रही है। खबर लिखे जाने तक बीजेपी संसदों में 96 सीटों पर ही आगे चल रही है। नंदीग्राम सीट पर भले ही शुभेंदु अधिकारी टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी से आगे चल रहे हैं, लेकिन बाबुल सुप्रियो, स्वप्न दासगुप्ता और लॉकेट चटर्जी जैसे बीजेपी के कई दिग्गज बैकवर्ड नजर आ रहे हैं। 5 दौर की गिनती के बाद लॉकेट चटर्जी 5,844 वोटों के पीछे चल रहे हैं।

इन विशाल चेहरों के साथ ही पार्टी के पिछड़ने को लेकर बीजेपी खेमे में निश्चित रूप से निराशा होगी। भले ही 2016 के मुकाबले बीजेपी ने 30 गुना बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन सरकार बनाने की उम्मीद पालने वाली पार्टी के लिए यह दावा नहीं किया जा सकता है। आइए जानते हैं, बीजेपी की उम्मीदों के मुताबिक पिछड़ने की क्या वजह हैं 5 बड़ी वजहें …

स्थानीय स्थानीय नेता की कमी
बीजेपी ने भले ही बंगाल में पीएम नरेंद्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह सहित केंद्रीय मंत्रियों की बड़ी फौज को चुनावी समर में उतारा था, लेकिन नतीजों में इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि राज्य में कोई मजबूत चेहरा न होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। दरअसल जनता के दिमाग में यह बात थी कि पीएम नरेंद्र मोदी बंगाल के सीएम नहीं बन रहे हैं। पार्टी की ओर से सूबे में सीएम के लिए किसी चेहरे का भी ऐलान नहीं किया गया था। माना जा रहा है कि ममता के मुकाबले एक मजबूत चेहरे की कमी बीजेपी को खला है।

लेफ्ट के सफे से टीएमसी को मिला
बीजेपी ने भले ही पूरी तरह से द्विपक्षीय ही बना दिया, लेकिन यह समीकरण उसके लिए भारी पड़ा है। दरअसल लेफ्ट और कांग्रेस के सफाये से साफ है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुए वोट टीएमसी को ही गया है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की ओर से एकजुट होकर टीएमसी को वोट गया है। यही समीकरण बीजेपी पर भारी पड़ रहा है। इसके उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले मालदा में तृणमूल कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है।

कोरोना की दूसरी लहर का बीजेपी पर ज्यादा कहर
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के कहर के चलते चुनाव प्रचार प्रभावित होने का नुकसान बीजेपी को हुआ है। हालांकि ये प्रेसिडेंसी वाले इलाके थे, जहां पिछले के तीन राउंड्स में चुनाव हुए थे। इन क्षेत्रों में ममता बनर्जी का गढ़ माना जाता रहा है। प्रेसिडेंसी में हावड़ा, हुगली, नार्थ और साउथ परगना और कोलकाता जैसे इलाके आते हैं। इन और मालदा रीजन में टीएमसी ने बढ़ी कायम कर सफलता हासिल की है।

एकजुट होने टीएमसी का वोटर, लेफ्ट में बीजेपी की सेंध
अब तक मिले गहनों से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने लेफ्ट-कांग्रेस के वोटों में बड़ी सेंध लगाकर सफलता हासिल की है। 2019 के आम चुनावों में 18 लोकसभा चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने अपनी वही सफलता को चुनौती दी है, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने से चूक गई है। इससे साफ है कि उसने लेफ्ट और कांग्रेस के वोटों में तो सेंध लगाई है, लेकिन टीएमसी का वोटर उससे जुड़ा हुआ है। यही नहीं बीजेपी विरोधी वोट भी उसे एकमुश्त मिला है।

ध्रुवीकरण के मुद्दों का असर नहीं दिखा
बंगाल में ‘जय श्री राम’ के नारे को चुनावी मुद्दा बनाकर उतरी बीजेपी को ध्रुवीकरण की बड़ी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं दिखा। बंगाल में बीजेपी के 100 सीटों से कम पर रहने से साफ है कि उसे लेफ्ट और कांग्रेस के बिखरे जनाधार से मदद मिली है, लेकिन ध्रुवीकरण नहीं हो गया है। इसके कारण टीएमसी अपनी स्थिति को बरकरार रखने में कामयाब रही है।

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