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लॉकडाउन: पिता का छूटा काम तो मासूमों के कंधे पर आया परिवार का भार, मजबूरी में कर रहे ये काम

लॉकडाउन: पिता का छूटा काम तो मासूमों के कंधे पर आया परिवार का भार, मजबूरी में कर रहे ये काम

by Sneha Shukla

कोरोना महामारी के बीच लागू तालाबंदी के दौरान अब दिहाड़ी मजदूर से लेकर बच्चे संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। कोरोना बीमारी ने लोगों के जीवन पर ऐसा संकट खड़ा किया की बच्चे अब अपने पेट के लिए गली मोहल्ले घूम कर हरी सब्जी बेचने लगे हैं। बक्सर जिले के चौलाईं प्रखंड के मुरार गांव के 15 वर्षीय रोहित कुमार ने अपने सात साल की बहन के साथ घर-घर घूमकर हरी सब्जी बेचकर परिवार का खर्चा बढ़ाने में लगे हुए हैं। इस समय दोनों बच्चों को कलम कॉपी के बारे में पढ़ना चाहिए। यह काम वह अपना और परिवार का पेट पालने के लिए चौपाईं और मुरार में कर रहे हैं।

रोहित कुमार का कहना है कि एक तो पहले लॉकडाउन से अभी उभरे नहीं थे, जो पापा दिन में दिहाड़ी करते थे तो शाम को हमलोगों को दो जब की भोजन मिलता था। लेकिन कोरोना के मार के कारण लागू लॉकडाउन से पापा की काम-काज बंद है। इससे हम लोग सब्जी बेचकर अपना दो देर की रोटी के जुगाड़ में लगे हैं। हम सत्संग की गली में जाकर और सड़क पर ठेला लगाकर सतर्कता बेचने का काम करते हैं। पापा का भी काम छूट गया है। घर में खाने का कुछ नहीं था। जिससे हम और पापा अलग-अलग जगह घूमते हुए सब्जी खाते हैं।

वहीं समाजसेवी अशोक कुमार सिंह ने कहा कि पहले लॉकडाउन से मजदूर अभी उभरे ही नहीं थे की फिर से लॉकडाउन ने मजदूरों की कमर तोड़ दी, प्रंद के सैकड़ो मजदूर अब दो वक्त की रोटी के लिए भटक रहे हैं। मेहनतकश लोगों के लिए ये दौर परेशानी का सबसे बड़ा सबब बन गया है। ऐसा लगा रहा है कि अब कोरोना से पहले दो की रोटी के लिए मर जायेंगे। लॉकडाउन होने के कारण दिहाड़ी मजदूरी करने वालों पर आफत टूट पड़ी है। सरकार सभी दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के भोजन की व्यवस्था करे।

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