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लॉकडाउन के दौरान जीबी रोड पर दीये तैयार करती महिलाएं...

लॉकडाउन में लाइफ : ‘रेशमा’ और ‘चांदनी’ ने बांधे स्वावलंबन के ‘घुंघरू’, बाकी हैं तैयार

by Sneha Shukla

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लॉकडाउन के दौरान जीबी रोड पर दीये तैयार करती महिलाएं …
– फोटो: अमर उजाला

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गुमनामी के अंधेरे में जी रही ‘तरन्नुम बाई’ हो या फिर ‘रेशमा’। टॉपलेस ‘चांदनी’ हो या ‘बुलबुल’। बदनाम गलियों में अपनी पहचान खो चुकीं ये तवायफ अब स्वावलंबन के ‘घुंघरू’ बांधकर उजले जीवन का ‘मुजरा’ करने को तैयार हैं। जीबी रोड पर छोटे-छोटे कमरों में ‘कैद’ 20 से ज्यादा वेश्याएं आजादी की उड़ान भरना चाहती हैं। इनमें दो ने तो उड़ान भरी भी है और बाहर निकलकर अपना ‘जहां’ रोशन भी कर लिया है।

लॉकडाउन में दो जून की रोटी को मोहताज हुईं इन महिलाओं में कई तो ऐसी हैं जिन्होंने सिर्फ पानी पीकर रातें गुजारीं। बहुत कठिन थे। कोरोना काल से पहले जहां रोजाना कम से कम चार ग्राहक पहुंचते थे, वहां लॉकडाउन के बाद एक भी नहीं पहुंचा।

यह कहानी सिर्फ एक या दो की नहीं, बल्कि उन तीन हजार महिलाओं की है, जिन्हें रोज़ाना बुरे काम के लिए गुमनामी की ‘मैली’ चादर ओढ़नी पड़ती है। हालांकि, स्थानीय पुलिस उनकी मददगार बनी हुई है। पुलिस की दीदी यानी एसआई किरण सेठी उन्हें जीबी रोड से निकालकर बाहर इज्जत भरा रोजगार दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।

अब तो हजारों गज दूर रहा हूँ …
रेशमा ने लॉकडाउन के दौरान अपनी पीड़ा बताई तो उसकी आंखें भर आई। वह आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले बराबर में बैठी चांदनी बोल पड़ी, ‘यह क्या बताएगी, मुझे तो एक बार दो दिन तक खाना ही नहीं मिला था। वो तो भला हो, पुलिस वाली दीदी (एसआई किरण सेठी) का, जो मददगार बनकर आगे आई। लॉकडाउन ने हमारी जिंदगी को ऐसा ‘संरक्षण’ किया कि दो गज छोड़िए, आज बदनाम गली से ‘हजारों गज’ दूर जा रहा हूं। ‘ कोविड उद्यमल के लहजे में बात खत्म करते-करते वह खिलाखिला पड़ी।

रेशमा और चांदनी कभी दिल्ली की रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्कर थे। अब दोनों नौकरी कर रहे हैं। यह संभव हुआ, पिछले साल लगे लॉकडाउन से। इसके बाद इनका पेशा पूरी तरह से बंद हो गया। इससे जीबी रोड की करीब तीन हजार महिलाओं की रोजी-रोटी पर संकट आ खड़ा हुआ था। बचत आदि न होने से कई को भूखा रहना पड़ा था। इसकी सूचना जीबी रोड चौकी प्रभारी किरण सेठी को मिली। सेक्स वर्कर्स में दीदी के नाम से प्रसिद्ध सेठी ने कुछ निजी तो कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से सबसे पहले खाने का इंतजाम किया।

किरण सेठी के मुताबिक, उन्हें लगा कि लॉकडाउन इनकी जिंदगी को दूसरी दिशा में मोड़ने का अवसर हो सकता है। एक बार जब सभी के लिए भोजन का इंतजाम हो गया तो अलग-अलग तरीके से उन्हें हुनरमंद बनाया गया। रूपवान, आज दो महिलाएं नौकरी कर रही हैं और लगभग 20 रेड लाइट एरिया छोड़कर जाने को तैयार हैं।

भोजन का इंतजाम होने के बाद इनकी उदासी दूर करने के लिए काउंसलिंग किए गए। इसी तरह इन महिलाओं के लिए नियमित योग की कक्षा शुरू हुई। सभी का स्वास्थ्य चेकअप कराया गया। इसी तरह छोटे-छोटे कामधंधे करने लायक प्रशिक्षण दिलाया गया। अब प्रोफेशनल व वोकेशनल कोर्स उपलब्ध कराने की भी तैयारी है। किरण सेठी बताती हैं कि अभी तक इनकी कमाई को लेकर बड़ी अनिश्चितता है। उम्मीद है, जब आमदनी का दूसरा स्रोत मिलेगा तो कई महिलाएं दमघोंटू पेशे को खुद ही छोड़ देंगी।

जीबी रोड पर 200 कोठे हैं
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के अजमेरी गेट से लाहौरी गेट के बीच का इलाका दिल्ली का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। इसे जीबी रोड के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों के समय में इसका नामकरण ब्रिटिश कमिश्नर सर्फस्टीन बास्टिन पर किया गया था। मुगल काल में इस इलाके में कुल पांच रेड लाइट एरिया यानी कोहे हुआ करते थे। अंग्रेजों ने इन पांचों क्षेत्रों को एक साथ कर दिया था। इस बार यहां 200 कोठे हैं, जिन पर लगभग 3000 सेक्स वर्कर रहते हैं। हालांकि, 1965 में इसका नाम बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया, लेकिन अब भी यह इलाका जीबी रोड के नाम से से प्रसिद्ध है।

संलग्न और हार्डवेयर की मार्केट भी
इस सड़क पर इन सबके अलावा अटके और हार्डवेयर का बाजार भी है। यहां दिन में हार्डवेयर की दुकानें खुलती हैं, लेकिन रात में सेक्स वर्कर्स का धंधा होता है। इस सड़क पर करीब 25 इमारतें हैं। कारोबार को जानने वाले बताते हैं कि सारा धंधा दलालों के जरिए चलता है। कोठा मालकिन पैसे का हिसाब रखता है। सेक्स वर्कर्स को मामूली राशि दी जाती है। यह कारण है कि लॉकडाउन में ही यह भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे।

विस्तार

गुमनामी के अंधेरे में जी रही ‘तरन्नुम बाई’ हो या फिर ‘रेशमा’। टॉपलेस ‘चांदनी’ हो या ‘बुलबुल’। बदनाम गलियों में अपनी पहचान खो चुकीं ये तवायफ अब स्वावलंबन के ‘घुंघरू’ बांधकर उजले जीवन का ‘मुजरा’ करने को तैयार हैं। जीबी रोड पर छोटे-छोटे कमरों में ‘कैद’ 20 से ज्यादा वेश्याएं आजादी की उड़ान भरना चाहती हैं। इनमें दो ने तो उड़ान भरी भी है और बाहर निकलकर अपना ‘जहां’ रोशन भी कर लिया है।

लॉकडाउन में दो जून की रोटी को मोहताज हुईं इन महिलाओं में कई तो ऐसी हैं जिन्होंने सिर्फ पानी पीकर रातें गुजारीं। बहुत कठिन थे। कोरोना काल से पहले जहां रोजाना कम से कम चार ग्राहक पहुंचते थे, वहां लॉकडाउन के बाद एक भी नहीं पहुंचा।

यह कहानी सिर्फ एक या दो की नहीं, बल्कि उन तीन हजार महिलाओं की है, जिन्हें रोज़ाना बुरे काम के लिए गुमनामी की ‘मैली’ चादर ओढ़नी पड़ती है। हालांकि, स्थानीय पुलिस उनकी मददगार बनी हुई है। पुलिस की दीदी यानी एसआई किरण सेठी उन्हें जीबी रोड से निकालकर बाहर इज्जत भरा रोजगार दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।

अब तो हजारों गज दूर रहा हूँ …

रेशमा ने लॉकडाउन के दौरान अपनी पीड़ा बताई तो उसकी आंखें भर आई। वह आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले बराबर में बैठी चांदनी बोल पड़ी, ‘यह क्या बताएगी, मुझे तो एक बार दो दिन तक खाना ही नहीं मिला था। वो तो भला हो, पुलिस वाली दीदी (एसआई किरण सेठी) का, जो मददगार बनकर आगे आई। लॉकडाउन ने हमारी जिंदगी को ऐसा ‘संरक्षण’ किया कि दो गज छोड़िए, आज बदनाम गली से ‘हजारों गज’ दूर जा रहा हूं। ‘ कोविड उद्यमल के लहजे में बात खत्म करते-करते वह खिलाखिला पड़ी।

रेशमा और चांदनी कभी दिल्ली की रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्कर थे। अब दोनों नौकरी कर रहे हैं। यह संभव हुआ, पिछले साल लगे लॉकडाउन से। इसके बाद इनका पेशा पूरी तरह से बंद हो गया। इससे जीबी रोड की करीब तीन हजार महिलाओं की रोजी-रोटी पर संकट आ खड़ा हुआ था। बचत आदि न होने से कई को भूखा रहना पड़ा था। इसकी सूचना जीबी रोड चौकी प्रभारी किरण सेठी को मिली। सेक्स वर्कर्स में दीदी के नाम से प्रसिद्ध सेठी ने कुछ निजी तो कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से सबसे पहले खाने का इंतजाम किया।

किरण सेठी के मुताबिक, उन्हें लगा कि लॉकडाउन इनकी जिंदगी को दूसरी दिशा में मोड़ने का अवसर हो सकता है। एक बार जब सभी के लिए भोजन का इंतजाम हो गया तो अलग-अलग तरीके से उन्हें हुनरमंद बनाया गया। रूपवान, आज दो महिलाएं नौकरी कर रही हैं और लगभग 20 रेड लाइट एरिया छोड़कर जाने को तैयार हैं।


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लॉकडाउन की वजह से …



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