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संकट के सिपाही मनीष जसवाल, नताशा साहनी और डॉ. नितिन कुमार

संकट के सिपाही : संक्रमितों की मदद के लिए बना रहे हैं प्लाज्मा डोनर्स का डाटाबेस

by Sneha Shukla

संकट के सिपाही मनीष जसवाल, नताशा साहनी और डॉ। नितिन कुमार
– फोटो: अमर उजाला

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आज की कड़ी में कुछ ऐसे कोरोना मार्टों की बात जो अपने-अपने स्तर पर और अलग-अलग तौर-तरीकों से को विभाजित मरीजों की सेवा में जुटे हुए हैं। चिकित्सकों के साथ ही अन्या पेशों से जुड़े लोग भी कोरोना काल में लोगों की मदद कर संकट के सिपाही साबित हुए हैं।

दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के चिकित्सकों ने शुरू की निशुल्क व्हाट्सएप सेवा
कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण समाज में फैली नकारात्मकता को दूर करने के लिए हिमाचल और बाहरी राज्यों में रहने वाले प्रदेश के डॉक्टरों ने कोरोना रोगियों को निशुल्क परामर्श देने की पहल की है। दिल्ली और हिमाचल के चिकित्सकों ने इसके लिए व्हाट्सएप सेवा शुरू की है। इसमें कोरोना से जुड़े सवालों और समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। चेतों की मदद के लिए प्लाजमा डोनर्स का डाटाबेस भी तैयार किया जा रहा है।

दिल्ली सरकार में कार्यरत आयुर्वेद विशेषज्ञ और शिमला निवासी डॉ। गौरव फुल्ल की ओर से इसको बारे में की गई है। उन्होंने बताया कि उनके कुछ चिकित्सक मित्रों, छात्रों और अन्य समाजसेवियों के साथ मिलकर एक मुहिम शुरू की है। लोगों की शंकाओं और समस्याओं (चिकित्सा संबंधी) को दूर किया जा रहा है और लोगों को एक-दूसरे की सहायता के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।]इस कलाई में कई आयुर्वेद के विशेषज्ञ चिकित्सक जिनमें से बहुत से हिमाचल में कार्यरत हैं, लोगों को नि: शुल्क परामर्श परामर्श दे रहे हैं और लोगों को समझा जा रहा है।) को विभाजित से ठीक हो चुके मरीजों को प्लाजमा दान के लिए जागरूक और प्रेरित किया जा रहा है।

डेटा बेस तैयार कोशिश की जा रही है कि विपदा की घड़ी में मरीजों को आसानी से निकटतम क्षेत्र में प्लाजमा दाता उपलब्ध करवाया जाए। डॉ। गौरव फुल्ल ने बताया कि समय पर सलाह और इलाज उपलब्ध हो जाए तो कोविड के 85 से 90 प्रति मरीज घरों में ही ठीक हो सकता है। उन्होंने बताया कि शिमला से डॉ। नितिन कश्यप, डॉ। सुमेश कटोच, डॉ। उमा शंकर शर्मा, डॉ। योगेश्वर मेहता, डॉ। वाटिका कश्यप, हमीरपुर में नादौन से डॉ। पंकज, डॉ। दीक्षित और डॉ। संजीव शर्मा इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।

सैंपल जांचते हुए हुईंर्ट, स्वस्थ होकर फिर से ड्यूटी पर
डॉ नताशा साहनी, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, जीएमसी कठुआ
महामारी से लड़ने में डॉक्टरों के साथ स्वास्थ्यकर्मियों की टीम जंग के सिपाही की तरह से लोगों की जान बचाने में जुटे हैं।]इनमें से केवल एक जीएमसी कठुआ के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। नताशा साहनी जो बिना थके अपनी जिम्मेदारी को अंजाम दे रही हैं।

उन्होंने बताया कि परिवार में सास-ससुर के अलावा पति और दो बच्चे हैं। एक बच्चे की आयु केवल 9 महीने है। सभी जम्मू में ही रहते हैं। ऐसे में पूरे परिवार को संभालना कई बार मुश्किल भी होता है। लेकिन जिम्मेदारी की याद कभी भी अपने कर्म से विमुख नहीं होती। जीएमसी कठुआ में कई बार आरटीपीसीआर के इतने ज्यादा सैंपल हो जाते हैं कि उनका बसारा करने में देर भी होती है। लेकिन परिवार के सहयोग के कारण वह लगातार अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।

गत दिनों वह खुद और परिवार के कुछ सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए। जिसके कारण उन्हें 15 दिनों तक घर में आइसोलेट होना पड़ा। लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ संपर्क बनाए रखा, जिसके कारण कोई भी काम नहीं हुआ है। इसके लिए सहकर्मियों के साथ-साथ जीएमसी कठुआ के प्रशासन का भी आभार जताती हैं।

घर की छत पर उगा दीं चिंताओं और फल, कोरोना रोगियों को मुफ्त बांट रहे हैं

मनीष जसवाल, ऊना, हिमाचल प्रदेश
जिला मुख्यालय के साथ लगते सलोह के मनीष जसवाल ने मकान की छत पर प्राकृतिक तरीके से सावधानीएं उगाई हैं। कोरोना महामारी के चलते मनीष जसवाल प्राकृतिक रूप से उगाए पैरों और सब्जियों को आइसोलेट परिवारों और रोगियों को मुफ्त में मिसाल पेश कर रहे हैं।

मनीष का कहना है कि शत-प्रतिशत प्राकृतिक ढंग से ऑर्गेनिक खेती में टमाटर, शिमला मिर्च, लौकी खीरा और फलों में अमरूद, नींबू, चेरी के पौधे छत पर ही तैयार किए जाते हैं। अपने घरेलू प्रयोग के बाद वह कोरोना की जद में आपोलेट लोगों को यह फल और सतर्कता दे रहे हैं ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक पौधे उगाने की विधि बहुत ही सरल और सस्ती है। इसके लिए सामग्री घर पर ही सबको मिल सकती है। जब पौधे उगने लगते हैं, तो बाद में उनके पालन पोषण पर ही ज्यादा ध्यान देना पड़ता है।

इस दौरान कीटाणु रोग पर हमला करते हैं। इसके लिए सप्रेही नीम का उबला हुआ पानी प्याज और लहसुन के छिलकों को उबालकर, आलू के छिलके को उबालकर, चावल को धोने वाले पानी से हर 10 दिन बाद इन पौधों पर स्प्रे होता है। सब्जी और फलों में कोई भी रसायन प्रयोग में नहीं लाया जाता है। ऐसे में यह अत्यंत पोषक तत्व होते हैं।

परिज्ञान संबंधी, फिर भी विभाजित वार्ड में कर रहे हैं मरीजों की सेवा
डॉ। नितिन कुमार, जिला अस्पताल, सहारनपुर
बुलंदशहर निवासी डॉ। नितिन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में भी फतेहपुर लेवल टू को विभाजित अस्पताल में अस्थिरों की जान बचाने में जुटे हैं।]वे एक महीने से विभाजित वार्ड में ड्यूटी दे रहे हैं। परिवार के कई अन्य सदस्य हैं और वे घर पर ही उपचार करते रहे हैं लेकिन समन्वयक मार्ग के कारण नितिन खुद विकृत नहीं हुए। ड्यूटी से थोड़ा समय निकालकर वे फोन पर ही घर वालों को भी उपचार के लिए टिप्स देते हैं।

आज की कड़ी में कुछ ऐसे कोरोना मार्टों की बात जो अपने-अपने स्तर पर और अलग-अलग तौर-तरीकों से को विभाजित मरीजों की सेवा में जुटे हुए हैं। चिकित्सकों के साथ ही अन्या पेशों से जुड़े लोग भी कोरोना काल में लोगों की मदद कर संकट के सिपाही साबित हुए हैं।

दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के चिकित्सकों ने शुरू की निशुल्क व्हाट्सएप सेवा

कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण समाज में फैली नकारात्मकता को दूर करने के लिए हिमाचल और बाहरी राज्यों में रहने वाले प्रदेश के डॉक्टरों ने कोरोना रोगियों को निशुल्क परामर्श देने की पहल की है। दिल्ली और हिमाचल के चिकित्सकों ने इसके लिए व्हाट्सएप सेवा शुरू की है। इसमें कोरोना से जुड़े सवालों और समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। चेतों की मदद के लिए प्लाजमा डोनर्स का डाटाबेस भी तैयार किया जा रहा है।

दिल्ली सरकार में कार्यरत आयुर्वेद विशेषज्ञ और शिमला निवासी डॉ। गौरव फुल्ल की ओर से इसको बारे में की गई है। उन्होंने बताया कि उनके कुछ चिकित्सक मित्रों, छात्रों और अन्य समाजसेवियों के साथ मिलकर एक मुहिम शुरू की है। लोगों की शंकाओं और समस्याओं (चिकित्सा संबंधी) को दूर किया जा रहा है और लोगों को एक-दूसरे की सहायता के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।]इस कलाई में कई आयुर्वेद के विशेषज्ञ चिकित्सक जिनमें से बहुत से हिमाचल में कार्यरत हैं, लोगों को नि: शुल्क परामर्श परामर्श दे रहे हैं और लोगों को समझा जा रहा है।) को विभाजित से ठीक हो चुके मरीजों को प्लाजमा दान के लिए जागरूक और प्रेरित किया जा रहा है।

डेटा बेस तैयार कोशिश की जा रही है कि विपदा की घड़ी में मरीजों को आसानी से निकटतम क्षेत्र में प्लाजमा दाता उपलब्ध करवाया जाए। डॉ। गौरव फुल्ल ने बताया कि समय पर सलाह और इलाज उपलब्ध हो जाए तो कोविड के 85 से 90 प्रति मरीज घरों में ही ठीक हो सकता है। उन्होंने बताया कि शिमला से डॉ। नितिन कश्यप, डॉ। सुमेश कटोच, डॉ। उमा शंकर शर्मा, डॉ। योगेश्वर मेहता, डॉ। वाटिका कश्यप, हमीरपुर में नादौन से डॉ। पंकज, डॉ। दीक्षित और डॉ। संजीव शर्मा इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।

सैंपल जांचते हुए हुईंर्ट, स्वस्थ होकर फिर से ड्यूटी पर

डॉ नताशा साहनी, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, जीएमसी कठुआ

महामारी से लड़ने में डॉक्टरों के साथ स्वास्थ्यकर्मियों की टीम जंग के सिपाही की तरह से लोगों की जान बचाने में जुटे हैं।]इनमें से केवल एक जीएमसी कठुआ के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। नताशा साहनी जो बिना थके अपनी जिम्मेदारी को अंजाम दे रही हैं।

उन्होंने बताया कि परिवार में सास-ससुर के अलावा पति और दो बच्चे हैं। एक बच्चे की आयु केवल 9 महीने है। सभी जम्मू में ही रहते हैं। ऐसे में पूरे परिवार को संभालना कई बार मुश्किल भी होता है। लेकिन जिम्मेदारी की याद कभी भी अपने कर्म से विमुख नहीं होती। जीएमसी कठुआ में कई बार आरटीपीसीआर के इतने ज्यादा सैंपल हो जाते हैं कि उनका बसारा करने में देर भी होती है। लेकिन परिवार के सहयोग के कारण वह लगातार अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।

गत दिनों वह खुद और परिवार के कुछ सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए। जिसके कारण उन्हें 15 दिनों तक घर में आइसोलेट होना पड़ा। लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ संपर्क बनाए रखा, जिसके कारण कोई भी काम नहीं हुआ है। इसके लिए सहकर्मियों के साथ-साथ जीएमसी कठुआ के प्रशासन का भी आभार जताती हैं।

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