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सर्वोच्च न्यायालय

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी: जिनके घर शीशे के हों, वे दूसरों पर पत्थर नहीं मारते

by Sneha Shukla

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अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली

द्वारा प्रकाशित: देव कश्यप
अपडेटेड थू, 01 अप्रैल 2021 04:08 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो: पीटीआई

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परिसर खाली करने में आर्नानी कर रहे एकोेदार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि जिनके घर शीशे के हों, वे दूसरों पर पत्थर नहीं मारते। कोर्ट ने अपने इस आदेश के जरिए एक बार फिर साफ कर दिया कि मकान मालिक ही असली मालिक होता है। एंटर्ड को खुद को बॉस समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।

जस्टिस रोहिंगटन एफ नारीमन की शीर्ष वाली तीन सदस्यीय पीठ ने पिछले दिनों दिए आदेश में XPbed दिनेश को किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि आपको परिसर खाली करना ही होगा। साथ ही पीठ ने बकाय पार्किंग का भुगतान करने के लिए ज़िब्ड़ को और समय देने से इनकार कर दिया। एंटर्ड की ओर से पेश वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से कहा कि उन्हें राशि जमा कराने के लिए कुछ दिनों का वक्त दिया जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने जस्टेड को मोहलत देने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आप राहत पाने के लायक नहीं हैं। आपको परिसर भी खाली करना ही होगा।

वास्तव में, ज़बेद ने लगभग तीन साल से मकान मालिक को किराया नहीं दिया था और न ही वह दुकान खाली करने के पक्ष में था। थक हारकर मकान मालिक को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। निचली अदालत ने चिकार को न केवल बकाया किराया चुकाने बल्कि दो महीने में दुकान खाली करने के लिए कहा। साथ ही वाद दाखिल होने से लेकर परिसर खाली करने तक 35 हजार प्रति माह दूरी का भुगतान करने के लिए भी कहा था। इसके बाद भी कई अन्य आदेशों के अनुसार पारित हुए लेकिन उसने आदेशों का पालन नहीं किया।

गत वर्ष जनवरी में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कोकोबड को लगभग नौ लाख रुपये जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया था, लेकिन उस आदेश का भी किंग्डम ने पालन नहीं किया। गत दिसंबर में अदालत द्वाराCobed को दुकान से बेदखल करने का आदेश पारित किया गया। उस पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने दुकान पर पहुंचे सरकारी अधिकारियों के कामकाज में बाधा पहुंचाने की भी कोशिश की। परिसर को कब्जे में लेने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट ने हाईकोर्ट का रुख किया था लेकिन वहां से उसे नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

विस्तार

परिसर खाली करने में आर्नानी कर रहे एकोेदार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि जिनके घर शीशे के हों, वे दूसरों पर पत्थर नहीं मारते। कोर्ट ने अपने इस आदेश के जरिए एक बार फिर साफ कर दिया कि मकान मालिक ही असली मालिक होता है। एंटर्ड को खुद को बॉस समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।

जस्टिस रोहिंगटन एफ नारीमन की शीर्ष वाली तीन सदस्यीय पीठ ने पिछले दिनों दिए आदेश में XPbed दिनेश को किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि आपको परिसर खाली करना ही होगा। साथ ही पीठ ने बकाय पार्किंग का भुगतान करने के लिए ज़िब्ड़ को और समय देने से इनकार कर दिया। एंटर्ड की ओर से पेश वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से कहा कि उन्हें राशि जमा कराने के लिए कुछ दिनों का वक्त दिया जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने जस्टेड को मोहलत देने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आप राहत पाने के लायक नहीं हैं। आपको परिसर भी खाली करना ही होगा।

वास्तव में, ज़बेद ने लगभग तीन साल से मकान मालिक को किराया नहीं दिया था और न ही वह दुकान खाली करने के पक्ष में था। थक हारकर मकान मालिक को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। निचली अदालत ने चिकार को न केवल बकाया किराया चुकाने बल्कि दो महीने में दुकान खाली करने के लिए कहा। साथ ही वाद दाखिल होने से लेकर परिसर खाली करने तक 35 हजार प्रति माह दूरी का भुगतान करने के लिए भी कहा था। इसके बाद भी कई अन्य आदेशों के अनुसार पारित हुए लेकिन उसने आदेशों का पालन नहीं किया।

गत वर्ष जनवरी में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कोकोबड को लगभग नौ लाख रुपये जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया था, लेकिन उस आदेश का भी किंग्डम ने पालन नहीं किया। गत दिसंबर में अदालत द्वाराCobed को दुकान से बेदखल करने का आदेश पारित किया गया। उस पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने दुकान पर पहुंचे सरकारी अधिकारियों के कामकाज में बाधा पहुंचाने की भी कोशिश की। परिसर को कब्जे में लेने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट ने हाईकोर्ट का रुख किया था लेकिन वहां से उसे नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।



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