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सुप्रीम कोर्ट : मीडिया को अदालत की मौखिक टिप्पणियों को रिपोर्ट करने से नहीं रोक सकते

by Sneha Shukla

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा, हम सुनवाई के दौरान जजों द्वारा की जाने वाली मौखिकताओं को रिपोर्ट करने से मीडिया को रोक नहीं सकते। इस तरह की रचनाएँ व्यापक जनहित में है। इससे जजों में जवाबदेही आती है और नागरिकों का न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, मौखिक टिप्पणियाँ आदेशों की तरह महत्वपूर्ण हैं। न्यायिक सोच की प्रक्रिया का खुलासा करना जनता के हित में है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, कोर्ट में क्या हो रहा है। क्या दिमागी अवशेष की जा रही है? ये सभी के बारे में नागरिक जानना चाहते हैं। हम अपने हाईकोर्ट को हतोत्साहित नहीं करना चाहते हैं। वे हमारी न्यायिक प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। दलील पेश किए जाने के दौरान जज और वकीलों के बीच कई तरह के संवाद होते हैं और कई बातें कही जाती हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि चुनाव आयोग की गलतियों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश जल्द ही पारित किया जाएगा। दरअसल, शीर्ष अदालत चुनाव आयोग की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने मद्रास हाईकोर्ट द्वारा हत्या का मुकदमा दर्ज करने से संबंधित टिप्पणी को चुनौती दी है।

साथ ही आयोग ने यह भी कहा है कि अदालत द्वारा की जाने वाली मौखिकताओं को प्रकाशित करने पर मीडिया पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी की थी कि को विभाजित -19 की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग अकेले जिम्मेदार है और उसके अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।

जग्स की नीलामी को कड़वी दवा की तरह लें
शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा, आप अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने वाली मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी को खुले दिमाग से ले। उसे आप कड़वी दवा की तरह लें। पीठ ने स्वीकार किया था टिप्पणियाँ काफी कठोर थी लेकिन कहा कि पीड़ा और हताशा के कारण वह टिप्पणी की गई होगी। कभी-कभी जज बड़े जनहित में कुछ बातें कहते हैं।

जस्टिस शाह ने कहा कि शायद उपयुक्त शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा, हम नहीं जानते कि अचानक ऐसा क्या हुआ और जज को ऐसा कहना पड़ा। कभी-कभी एक के बाद एक आदेश पारित किए जाने के बावजूद अथॉरिटी द्वारा आदेशों का पालन नहीं किया जाता है। जमीनी हकीकत के आधार पर ऐसी टिप्पणियाँ की जाती हैं। पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों द्वारा दी गई मौखिक टिप्पणी क्षणिक होती है।

आयोग ने कहा, जब रैलियां हो रही थीं, तब हालात इतने खराब नहीं थे
परीक्षण के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने बिना किसी तघ्य व प्रमाण के चुनाव आयोग पर हत्या ल मुकदमा करने की बात कही थी।

द्विवेदी ने कहा, जब रैलियां हो रही थीं, तो हालात इतने खराब नहीं थे। हमें हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर गंभीर आपत्ति है। इस टिप्पणी के बाद मीडिया में इस बार बहस चल रही है कि हम हत्यारे हैं। सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जाने लगा।

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