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हाईकोर्ट का आदेश : बीमा कंपनियां कोरोना मरीजों का बिल एक घंटे में करें मंजूर

by Sneha Shukla

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली

द्वारा प्रकाशित: दुष्यंत शर्मा
अपडेटेड थू, 29 अप्रैल 2021 05:01 AM IST

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– फोटो: सोशल मीडिया

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उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनियों को कोविद -19 रोगियों के बिलों को 30 से 60 मिनट में पास करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि बीमा कंपनियों बिलों को मंजूरी देने के लिए 6-7 घंटे नहीं ले सकतीं क्योंकि इससे अस्पतालों से मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होती है और बिस्तरों की जरूरत वाले लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अदालत को किसी बीमा कंपनी या थर्ड पार्टी मध्यस्थ (टीपीए) प्रसंस्करण इंश्योरेंस क्लेम के बिल क्लियर करने के लिए 6-7 घंटे का समय लेने की जानकारी मिलती है तो उनके खिलाफ सलमान की कार्रवाई की जाती है। होगा।

उन्होंने अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनियों या टीपीए को अस्पतालों से प्राप्त होने के बाद बिलों को मंजूरी देने में 30 से 60 मिनट से अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। अदालत ने बीमा कंपनी IRDAI को इस संबंध में निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

अदालत ने अस्पताल प्रबंधनको को भी निर्देश दिया कि वे मरीज के डिस्चार्ज होने का इंतजार किए बिना ही नए मरीजों की भर्ती प्रक्रिया जारी रखे ताकि मरीज के बिस्तर खाली कर ही बिना डेल से दूसरे मरीज को बिस्तर मिल सके। इससे लंबे अरसे तक बिस्तर को खाली नहीं रखा जा सकता था। ऐसा ही आदेश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने अलेजग मामले की सुनवाई के दौरान दिया है।

खंडपीठ ने बीमा कंपनियों और टीपीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बिलों को मंजूरी देने में लगने वाले समय को कम किया जाए क्योंकि कोविड संक्रमणों में भारी वृद्धि के दौरान बिस्तरों की प्रतीक्षा कर रहे अस्पतालों के बाहर लोगों की लंबी कतारें लगी है। खंडपीठ ने कहा कि अस्पतालों में मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होने से जरूरतमंद मरीजों को भर्ती करने में देरी होती है और मरीज परेशान हो रहे हैं।

अदालत ने यह निर्देश दिया कि इस तर्क पर कि बीमा कंपनियों ने टीपीए बिलों के भुगतान में देरी दे मंजूरी दे रही है। इस कारण अस्पताल प्रशासन मजबूरी में 8 से 10 घंटे तक मरीजों को बिस्तर पर ही रखते हुए है और जरुरतमंद रोगी बिस्तर पाने से वंचित हो रहे हैं। ताजगी में ऑक्सीजन की कमी को लेकर ही प्रमुख रुप से परीक्षण हुआ।

विस्तार

उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनियों को कोविद -19 रोगियों के बिलों को 30 से 60 मिनट में पास करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि बीमा कंपनियों बिलों को मंजूरी देने के लिए 6-7 घंटे नहीं ले सकतीं क्योंकि इससे अस्पतालों से मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होती है और बिस्तरों की जरूरत वाले लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अदालत को किसी बीमा कंपनी या थर्ड पार्टी मध्यस्थ (टीपीए) प्रसंस्करण इंश्योरेंस क्लेम के बिल क्लियर करने के लिए 6-7 घंटे का समय लेने की जानकारी मिलती है तो उनके खिलाफ सलमान की कार्रवाई की जाती है। होगा।

उन्होंने अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनियों या टीपीए को अस्पतालों से प्राप्त होने के बाद बिलों को मंजूरी देने में 30 से 60 मिनट से अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। अदालत ने बीमा कंपनी IRDAI को इस संबंध में निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

अदालत ने अस्पताल प्रबंधनको को भी निर्देश दिया कि वे मरीज के डिस्चार्ज होने का इंतजार किए बिना ही नए मरीजों की भर्ती प्रक्रिया जारी रखे ताकि मरीज के बिस्तर खाली कर ही बिना डेल से दूसरे मरीज को बिस्तर मिल सके। इससे लंबे अरसे तक बिस्तर को खाली नहीं रखा जा सकता है। ऐसा ही आदेश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने अयाल मामले की सुनवाई के दौरान दिया है।

खंडपीठ ने बीमा कंपनियों और टीपीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बिलों को मंजूरी देने में लगने वाले समय को कम किया जाए क्योंकि कोविड संक्रमणों में भारी वृद्धि के दौरान बिस्तरों की प्रतीक्षा कर रहे अस्पतालों के बाहर लोगों की लंबी कतारें लगी है। खंडपीठ ने कहा कि अस्पतालों में मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होने से जरूरतमंद मरीजों को भर्ती करने में देरी होती है और मरीज परेशान हो रहे हैं।

अदालत ने यह निर्देश दिया कि इस तर्क पर कि बीमा कंपनियों ने टीपीए बिलों के भुगतान में देरी दे मंजूरी दे रही है। इस कारण अस्पताल प्रशासन मजबूरी में 8 से 10 घंटे तक मरीजों को बिस्तर पर ही रखते हुए है और जरुरतमंद रोगी बिस्तर पाने से वंचित हो रहे हैं। ताजगी में ऑक्सीजन की कमी को लेकर ही प्रमुख रुप से परीक्षण हुआ।

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