पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट एमआर सफाए के बाद उनके लिए हमदर्दी वहां से आई है, जहां से वामपंथियों ने कभी उम्मीद नहीं की होगी। बंगाल में 10 साल पहले लेफ्ट हिस्से के 34 साल पुराने शासन को उखाड़ने वालीं ममता बनर्जी ने कहा है कि वह उन्हें इस हालत में नहीं देखना चाहती। उन्होंने कहा, ” मैं राजनीतिक रूप से उनका विरोध करता हूं, लेकिन उन्हें शून्य नहीं देखना चाहता। ” ममता ने यह भी कहा कि वह बीजेपी से बेहतर लेफ्ट को मानती हैं।
ममता ने कहा, ” वाम दलों के साथ राजनीति मतभेद हैं, लेकिन मैं उन्हें शून्य पर पहुंचता नहीं देखना चाहता हूं। बेहतर होता है कि वे भाजपा से अपना वोट वापस हासिल कर लें। उन्होंने भाजपा को इस कदर फायदा पहुंचाया कि आज वे शून्य हो गए। उन्हें इस बारे में सोचने की जरूरत है। दीपांकर भट्टाचार्य (भक्तपा माले) इस तरह से नहीं चले गए। ”
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वाम दल अपना वो वोटबैंक वापस हासिल नहीं कर पाए पाए जो उन्होंने भाजपा के हाथों खो दिए हैं और इस कारण से वामपंथी दलों की स्थिति में और गिरावट आ गई।
आजादी के बाद यह पहली बार है जब 294 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस या वाम दलों का एक भी विधायक नहीं होगा। दोनों ही भागों ने यहां दशकों तक शासन किया है, लेकिन अब उनकी जगह बीजेपी ने ले ली है। रविवार को घोषित चुनाव नतीजों में बीजेपी को 77 सीटें मिली हैं तो 213 सीटों पर कब्जा जमाकर टीएमसी लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है।]
वाम नेताओं ने पार्टी के प्रदर्शन को एक तबाही कहा है। कई लोगों ने माना है कि ISF से गठबंधन का खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। माना जा रहा है कि राज्य में बीजेपी की जीत की संभावना को देखते हुए मुसलमानों ने एकमुश्त ममता बनर्जी की पार्टी को वोट दिया है। कांग्रेस के गढ़ मुर्शिदाबाद और मालदा में भी टीएमसी को ही जीत मिली है।
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