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डॉ. सुधीर चांदना, डॉ. अनंत नारायण भट्ट और डॉ. अनिल मिश्रा।

2-डीजी: डीआरडीओ के तीन वैज्ञानिकों की देन है कोरोना की दवा, जानिए इनके बारे में

by Sneha Shukla

सार

कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहे देश के लिए एक नई दवा की खबर नई उम्मीद के बारे में आई है। भारत के औषधि महानियंत्रक (जीजीआई) ने डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) द्वारा विकसित इस कोविड रोधी दवा के आपातकालीन उपयोग की अनुमति दे दी है। रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह दवा कोरोना रोगियों को जल्दी ठीक होने में मदद करती है और ऑक्सीजन पर निर्भरता भी कम करती है। यहाँ हम आपको बताने जा रहे हैं उन वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने इस दवा को विकसित किया है।

डॉ। सुधीर चांदना, डॉ। अनंत नारायण भट्ट और डॉ। अनिल मिश्रा
– फोटो: अमर उजाला

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2-डीजी (2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज) दवा को ऐसे समय मंजूरी मिली है जब भारत कोरोनावायरस की महामारी की दूसरी लहर से घिरा हुआ है और देश के स्वास्थ्य अवसंरचना पर भारी दबाव है। खास बात यह है कि यह दवा पाउडर के रूप में पैक में आता है, इसे पानी में घोलकर पीना होता है। संकट के समय में वरदान मानी जा रही इस दवा को तैयार करने के पीछे तीन वैज्ञानिकों का दिमाग रहा है। ये डॉ। सुधीर चांदना, डॉ। अनंत नारायण भट्ट और डॉ। अनिल मिश्रा

डॉ। सुधीर चांदना
हिसार के रहने वाले सुधीर चांदना डीआरडीओ में अतिरिक्त निदेशक हैं और उन्होंने इस दवा को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चांदना का जन्म अक्टूबर 1967 में हिसार के पास रामपुरा में हुआ था। उनके पिता हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बीएससी और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में। वर्ष 1991 से 1993 तक उन्होंने ग्वालियर और फिर दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में अपनी सेवा दी।

डॉ। अनंत नारायण भट्ट
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले डॉ। अनंत नारायण भट्ट डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान गगहा में हुई और उन्होंने किसान पीजी कॉलेज से की। इसके बाद उन्होंने अवध विश्ववी और से जैवकेमिस्ट्री में की की। सीडीआरआई लखनऊ से उन्होंने ड्रग डेवलपमेंट (औषधि विकास) विषय में पीएचडी पूरी की। इसके बाद वह बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ से जुड़ गए।

डॉ। अनिल मिश्रा
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले डॉ। अनिल मिश्रा यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉल फेलो रहे हैं। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से की की थी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की थी। वह डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में वैज्ञानिक हैं और साइक्लोट्रॉन एडं रेडियो प्रायोगिक साइंसेज बाल्जन में भी सेवाएं दे रहे हैं। वर्ष 2002 से 2003 तक वह जर्मनी के प्रतिष्ठित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं।

इस दवा को डीआरडीओ की प्रतिष्ठित प्रयोगशाला नामिकीय औषिध और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएनएमएएस) ने हैदराबाद के डॉ.रेड्डी लेबोरेटरी के साथ मिलकर विकसित किया है। इस संबंध में जारी एक बयान के मुताबिक पिछले साल की शुरुआत में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से तैयारियों करने का आह्वान किया गया, जिसके बाद डीआरडीओ ने इस दवा पर काम शुरू किया।

इस दवा को लेकर रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘को विभाजित -19 की चल रही दूसरी लहर की वजह से बड़ी संख्या में मरीजों को ऑक्सीजन और अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ रही है। इस दवा से कीमती जिंदगियों के बचने की उम्मीद है क्योंकि यह दवा खाने वाली कोशिकाओं पर काम करती है। यह करने के लिए -19 रोगियों के अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि भी कम करती है। ‘

मंत्रालय ने कहा, ‘एक मई कोल्डजीआई ने इस दवा को कोविड -19 के मध्यम और गंभीर लक्षण वाले रोगियों के इलाज के लिए सहायक पद्धति के रूप में उपयोग किए जाने की मंजूरी दी। सामान्य विषाणु और ग्लूकोज के अनुरूप होने की वजह से इसे भारी मात्रा में देश में ही तैयार व उपलब्ध कराया जा सकता है। ‘) सहायक पद्धति वह इलाज है जिसका उपयोग प्राथमिक उपचार में मदद करने के लिए किया जाता है।

रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘डीआरडीओ की 2-डीजी दवा वायरस से हानिकारक कोशिका में जमा हो जाता है और वायरस की वृद्धि को रोक देता है। वायरस से भिन्न कोशिका पर चुनिंदा तरीके से काम करना इस दवा को विशेष बनाता है। ‘ दवा के असर के बारे में मंत्रालय ने बताया कि जिन लक्षण वाले रोगियों के 2 डीजी से इलाज किया गया वे मानक उपचार प्रक्रिया (एसओसी) से पहले ठीक हुए।

मंत्रालय ने कहा, ‘इस दवा से इलाज करने पर मरीजों के विभिन्न मापदंडों के समान होने में एसओसी के औसतन समय के मुकाबले 2.5 दिन कम समय लगा दिया।’ बयान के मुताबिक, ‘चिकित्सीय परीक्षण के नतीजों के मुताबिक इस दवा से अस्पताल में भर्ती मरीज जल्दी ठीक हो गए और उनकी अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम हो गई। 2 डीजी से इलाज कराने वाले ज्यादातर मरीज आरटी-पसीने की जांच में निगेटिव आए। ‘

विस्तार

2-डीजी (2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज) दवा को ऐसे समय मंजूरी मिली है जब भारत कोरोनावायरस की महामारी की दूसरी लहर से घिरा हुआ है और देश के स्वास्थ्य अवसंरचना पर भारी दबाव है। खास बात यह है कि यह दवा पाउडर के रूप में पैक में आता है, इसे पानी में घोलकर पीना होता है। संकट के समय में वरदान मानी जा रही इस दवा को तैयार करने के पीछे तीन वैज्ञानिकों का दिमाग रहा है। ये डॉ। सुधीर चांदना, डॉ। अनंत नारायण भट्ट और डॉ। अनिल मिश्रा

डॉ। सुधीर चांदना

हिसार के रहने वाले सुधीर चांदना डीआरडीओ में अतिरिक्त निदेशक हैं और उन्होंने इस दवा को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चांदना का जन्म अक्टूबर 1967 में हिसार के पास रामपुरा में हुआ था। उनके पिता हरियाणा न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बीएससी और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में। वर्ष 1991 से 1993 तक उन्होंने ग्वालियर और फिर दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में अपनी सेवा दी।

डॉ। अनंत नारायण भट्ट

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले डॉ। अनंत नारायण भट्ट डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान गगहा में हुई और उन्होंने किसान पीजी कॉलेज से की। इसके बाद उन्होंने अवध विश्ववी और सेकेकेमिस्ट्री में की की। सीडीआरआई लखनऊ से उन्होंने ड्रग डेवलपमेंट (औषधि विकास) विषय में पीएचडी पूरी की। इसके बाद वह बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ से जुड़ गए।

डॉ। अनिल मिश्रा

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले डॉ। अनिल मिश्रा यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉल फेलो रहे हैं। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से की की थी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की थी। वह डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज में वैज्ञानिक हैं और साइक्लोट्रॉन एडं रेडियो प्रायोगिक साइंसेज बाल्जन में भी सेवाएं दे रहे हैं। वर्ष 2002 से 2003 तक वह जर्मनी के प्रतिष्ठित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं।


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