3 Types Of Rozedar In Hindi :- अस्सलामु अलैकुम नाजराने दीन आज हम आपको रोजदार के तीन दरजात बताने जा रहे है, जिससे आपको पता लगेगा के अल्लाह की बारगाह में रोजदार के वो कोन से दरजात है, जो अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद है।
जिसमे आते हैं – आम रोज़ा जिसके मायने है, की ये जिसमे इंसान सबसे पहले खाना पीना छोड़ दे और वो सभी काम जिसके लिए अल्लाह ने रोजे में माना फरमाया है !
जैसे की मर्द का अपनी बीवी के करीब जाना और कोई भी ताल्लुक बनाना.उसके बाद आता है, ख़ास रोज़ा जिसमे अल्लाह फरमाता हैं, की जब इंसान को मालूम हो जाए की खाने पीने के अलावा उसको अपनी आप को बुराई बेइमानी धोका झूट फरेब से भी रोकना बोहोत जरूरी है।
अपनी रोजे को मुकम्मल करने के लिए और वो इन सभी बुराइयों से बच जाए तो उसका वही रोज़ा खास हो जाता है! उसके बाद आता है – तीसरा और सबसे अहम दरजात जो है, सब ख़ास और अव्वल रोज़ा और उसका अव्वल सवाब जो कुछ यूं है – खुद को पूरी तरह से बदल लेना।
जिसमे सबसे ज़्यादा जरूरी है, दिल क्युकी अल्लाह सबके दिलो के हाल बखूबी जानता है, इसलिए इंसान को हमेशा दिल से बुरे खयालों को दूर रखना चाहिए और अल्लाह के दिए हुए इस खास तौफे रमजान में हर इंसान को नेक बन जाना चाहिए और अपने दिल से हर बुराई को निकाल देना चाहिए !
अल्लाह हम सबको नेक बनाए और हम इस रमजान में अल्लाह की बारगाह में ज़्यादा से ज़्यादा अच्छे कामों के साथ जाए और अल्लाह हम सबके तमाम गुनाहों को माफ आता फरमाए । अब हम इन तीनो दरजात के बारे में अच्छी तरह से जानतें हैं।
3 Types Of Rozedar In Hindi
- आम रोज़ा
आम रोज़ा वो है जिसमे खाना पीना छोड़ना जरूरी है और अपनी निजी खुवाईशात जैसे अपनी बीवी से ताल्लुक बनाना। कोई इंसान रमजान की फजीलतो को जानते हुए रोज़ा रखे और खाना पीना छोड़ दे तो उसका रोज़ा आम होता हैं और वो अपनी बीवी से ताल्लुक भी नही बनता इस हालत में तो वो आम है और जरूरी भी लेकिन अगर उसने रोज़ा रखने के बाद भी दूसरी बुराई से अपने आप को नही दूर रखा तो वो गलत माना जाएगा।
जैसे बुराई गीबत बेइमानी चालाकी ये सब गुनाहा वो करता रहा यानी जो वो रोज पहले भी करता था, तो वो अल्लाह की बारगाह में रोज़ा कबूल नहीं किया जाएगा और उसका ये आम रोज भी नही माना जाएगा क्युकी रोज़ा तो अल्लाह की सबसे बड़ी नैमात है।अल्लाह हम सबको बुराई से बचाए और नेक बनाए.
- ख़ास रोज़ा
ख़ास रोज़ा वो है, जिसमे खुद को आंख कान नाक ज़ुबान और बदन के तमाम गुनाहों को करने से रोका जाए। जिससे की वो रोज़ा अल्लाह की बारगाह में कुबूल हों सके. जैसे की एक रोजदार ने रोज़ा रखा और उसने वो सभी काम छोड़ दिए जिससे उसका रोज़ा टूट सकता था जैसे की खाना पीना और बीवी से ताल्लुक बनाना जो की दोनो ही काम हलाल है।
तो अब उसको उन कामों को भी छोड़ना होगा जो हराम है, क्युकी रमजान के इस पाक महीने में उन हराम कामों की बुराई और बढ़ जाती है। हदीसो से ये बात साबित है की जिस इंसान ने रोजे की हालत में भी झूट बोलना बुराई करना किसी को धोका देना किसी के साथ गलत काम करना किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं छोड़ा, तो उस इंसान का रोज़ा अल्लाह ताला को भी कुबूल नही होगा और ना ही अल्लाह को ऐसे इंसान के रोजे की ज़रूरत नही।
इसलिए अल्लाह ने फरमाया है, की जो इंसान रोज़ा रखने के बाद आंख, कान , ज़ुबान , और बदन हर चीज का रोज़ा रख लिया और तमाम बुरे कामों से बच गया तो उसका रोज़ा मुकम्मल हो गया और वो रोज़ा खास हो गया !
- सब से ख़ास रोज़ा
सब से ख़ास रोज़ा उसको माना गया है, जिसमे इंसान ने अपने दिल को पाक कर लिया हो और दिल का रोज़ा रख लिया हो यानी दिल के तमाम बुरे खयाल बुरी बाते और दुनिया की तमाम बुराई से खुद को दूर कर लिया और सारी बातों को भुला कर इस पाक रमजान में बस अल्लाह की तरफ अपना सारा ध्यान लगा लिया।
जब रोजदार रोज़ा रखता है, तो अल्लाह उससे यही चाहता है की वो अपने आप को और अपने दिल के हाल को बदल ले और नेकी की तरफ चल पड़े न सिर्फ रमजान में बल्कि पूरी जिंदगी।
रमजान का महीना बोहोत बरकतों होता है, रमजान में इंसान को अपने दिल से तमाम गुन्हा निकाल देने चाहिए क्युकी जब दिल गुन्हाओ और गंदिगी से पाक होगा, तो इंसान खुद नेकी की तरफ आएगा उसको गुनाह अच्छे नहीं लगेंगे।
उसकी रूह में ताजगी आयेगी वो खुश रहेगा रमजान की बरकत उसके दिल दिमाग में होगी, अल्लाह की हर बात उसके दिल में उतर जाएगी वो अल्लाह का प्यारा बांदा बन जाएगा हलाल और हराम में फर्क समझ आएगा हलाल रिजक की पहचान होगी दिल ज्यादा से ज्यादा अल्लाह के जिक्र में शामिल रहेगा।
Conclusion
इन सारी बातों 3 Types Of Rozedar In Hindi से यह मालूम होता है, को इंसान को हमेशा अल्लाह की बारगाह में शामिल होने के लिए तैयार रहना चाहिए और न सिर्फ रमजान बल्कि पूरी जिंदगी पाकीज़ा और नेक रहना चाहिए।
जब एक बांदा पूरे महीने नेक बनने की कोशिश करता है, तो उसके लिए ये आसन हो जाता है और रोज़ा रोजदार से यही चाहता है। रोज़ा रखने का मतलब सिर्फ खाने पीने से दूर रहना और बुरे काम को छोड़ना नहीं है और गुनाहों से दूर रहना नही है, बल्कि अपनी दिल को भी हर नापकी और गंदगी से दूर रखना भी है और हर उस चीज को निकाल देना जो हमे अल्लाह से दूर ले जाती है।
रमजान में रोजदार के दिल में दूसरो के लिए नरमी रखना भी बोहोत जरूरी है, एक दूसरे से प्यार मोहब्बत से रहना और रमजान का एहतराम करना बोहोत जरूरी है, अल्लाह हम सब को नेक रस्ते पर चलने की तौफीक आता फरमाए और हमे हर गुनाह से बचाते हुए सारे रोजे रखने की तौफीक आता फरमाए।अल्लाह हम सभी के रोजे कुबूल आता फरमाए।
अल्लाह हम सब को नेक अमाल करने की तौफीक आता फरमाए।
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