Bhakti Kaal Ki Visheshtayen :- भक्ति काल हिंदी साहित्य एक स्वर्णिम युग है। हमें हिंदी काव्य में भक्ति काल युग के बारे में पढ़ने को मिलता है। कई छात्र जो अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं या फिर जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं वह Bhakti Kaal Ki Visheshtayen जानना चाहते हैं। क्योंकि अक्सर हिंदी की परीक्षा में यह प्रश्न पूछा जाता है।
इसलिए आज के इस लेख में हम Bhakti Kaal Ki Visheshtayen के बारे में चर्चा करेंगे। साथ ही हम भक्ति काल के प्रमुख कवियों के नाम और विशेषताएं भी जानेंगे।
भक्ति काल किसे कहते हैं ?
भक्ति काल की विशेषताएं जानने से पहले लिए हम भक्ति काल की परिभाषा जान लेते हैं। तो भक्ति काल की परिभाषा के अनुसार यह एक ऐसा काल है, जिसमें ईश्वर की भक्ति को प्रमुखता दी गई है।
इस काल में अनेक संत कवियों जैसे कबीर दास, तुलसीदास, सूरदास, इत्यादि लोगों ने ईश्वर की भक्ति का प्रचार प्रसार किया। भक्ति काल में हिंदी साहित्य में एक नया आयाम आया और इसने हिंदी भाषा और समाज को एक बड़ा युग प्रदान किया।
भक्ति काल की शुरुआत 1375 ई से हुई और यह 1700 ई तक चली। इस काल में भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा था और इस दौरान अनेक महान संत कवियों ने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति दिखाई थी।
Bhakti Kaal Ki Visheshtayen – भक्ति काल की क्या विशेषताएं हैं ?
भक्तिकाल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- ईश्वर के प्रति उत्कृष्ट प्रेम
भक्ति काल के संतों ने ईश्वर के प्रति अत्यधिक प्रेम और भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर को एकमात्र सच्चे ईश्वर के रूप में बताया और यह कहा कि केवल ईश्वर की भक्ति से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
- कबीर ने कहा, “प्रेम बिना भक्ति नहीं, भक्ति बिना मोक्ष नहीं।”
- नानक ने कहा, “ईश्वर ही सब कुछ है।”
- समानता का भाव
भक्ति काल के संतों ने सभी लोगों में समानता का भाव पैदा करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि सभी लोग ईश्वर की संतान हैं और इसलिए उनमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
भक्तिकाल के संत-कवियों ने सामाजिक कुरीतियों और अन्याय का विरोध किया। उन्होंने लोगों को जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि के भेद-भाव को छोड़कर एक-दूसरे से प्रेम करने का उपदेश दिया।
- कबीर ने कहा, “कबीर सो हरि है, जो मन में बसै।”
- रविदास ने कहा, “चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, सब एक हैं।”
- गुरु की महिमा एवं नाम स्मरण
भक्ति काल के संतों ने गुरु की महिमा का गुणगान किया। उन्होंने बताया कि गुरु के मार्गदर्शन के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है। उन्होंने नाम स्मरण को भी भक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन बताया।
भक्तिकाल के संत-कवियों ने धार्मिक कर्मकांडों और मूर्तिपूजा का विरोध किया। उन्होंने लोगों को सच्ची भक्ति का मार्ग बताया।
उन्होंने कहा कि ईश्वर की भक्ति के लिए किसी बाहरी पूजा-अर्चना की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर की सच्ची भक्ति अंतर्मुखी होकर की जाती है।
- रामानंद ने कहा, “गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना मोक्ष नहीं।”
- वल्लभ ने कहा, “नाम जपने से भगवान मिलते हैं।”
- शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
भक्ति काल के संतों ने शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता को नकार दिया। उन्होंने बताया कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए शास्त्र ज्ञान की आवश्यकता नहीं है, बल्कि केवल भक्ति ही पर्याप्त है।
- कबीर ने कहा, “मुर्ख शास्त्र पढ़े पढ़े, ज्ञान नहिं पाया।”
- नानक ने कहा, “ईश्वर को दिल से खोजो, किताबों में नहीं।”
- अहंकार का त्याग व लोक जीवन से जुड़ाव
भक्ति काल के संतों ने अहंकार का त्याग करके लोक जीवन से जुड़ने का उपदेश दिया। उन्होंने बताया कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया से दूर होना आवश्यक है।
- कबीर ने कहा, “अहंकार से बुराई बढ़ती है।”
- रविदास ने कहा, “गरीबों की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा है।”
- नारी संबंधी विचार
भक्ति काल के संतों ने स्त्रियों को पुरुषों के समान माना। उन्होंने बताया कि स्त्रियों में भी पुरुषों की तरह ही आत्मा है और वे भी ईश्वर की प्राप्ति कर सकती हैं।
भक्तिकाल के संत-कवियों ने समाज में प्रचलित छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं और उनमें किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करना चाहिए।
- मीराबाई ने कहा, “कृष्ण मेरी आत्मा हैं।”
- सूरदास ने कहा, “कृष्ण के प्रेम में स्त्री और पुरुष समान हैं।”
भाषा शैली
भक्ति काल के संतों ने लोकभाषा का प्रयोग किया। उन्होंने अपने उपदेशों को सरल और सुबोध भाषा में व्यक्त किया ताकि आम लोग भी उनका लाभ उठा सकें।
भक्तिकाल के संत-कवियों ने हिंदी भाषा में विभिन्न साहित्यिक विधाओं में रचनाएँ कीं। उन्होंने भजन, पद, स्तोत्र, कविता, कहानी आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ कीं।
उनकी रचनाएँ सरल और सहज भाषा में लिखी गई हैं। इससे हिंदी भाषा का विकास हुआ और यह एक समृद्ध भाषा के रूप में विकसित होने लगी।
इन विशेषताओं ने भक्ति काल को भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण अवधि बना दिया। इस काल के संतों के उपदेशों ने भारतीय समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।
भक्तिकाल के प्रमुख कवियों की विशेषता
- ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति
भक्तिकालीन कवियों की ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति थी। वे ईश्वर को अपना सब कुछ मानते थे। वे ईश्वर के प्रति प्रेम, आस्था और समर्पण की भावना से भरपूर थे।
भक्तिकालीन कवियों ने अपने साहित्य के माध्यम से ईश्वर की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने लोगों को ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
- सादगी और सरलता
भक्तिकालीन कवियों की रचनाएँ सरल और सहज भाषा में लिखी गई हैं। इनमें किसी प्रकार की अलंकारों या शब्दाडंबर का प्रयोग नहीं किया गया है।
इसका कारण यह है कि भक्तिकालीन कवि अपने साहित्य के माध्यम से आम जनता तक ईश्वर की भक्ति का संदेश पहुँचाना चाहते थे। वे चाहते थे कि उनकी रचनाएँ सभी वर्ग के लोगों के लिए समझने में आसान हों।
- लोकप्रियता
भक्तिकाल के कवियों की रचनाएँ जनमानस में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। इन रचनाओं को आज भी लोग बड़े ही श्रद्धा और प्रेम से सुनते और गाते हैं। इसका कारण यह है कि भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं में ऐसी भावनाएँ व्यक्त की गई हैं जो मनुष्य के दिल को छू लेती हैं।
इन रचनाओं में ईश्वर की भक्ति, प्रेम, करुणा, दया आदि की भावनाएँ व्यक्त की गई हैं। ये भावनाएँ सभी मनुष्यों के हृदय में उपस्थित हैं। इसलिए, भक्तिकालीन कवियों की रचनाएँ सभी लोगों के लिए आकर्षक हैं।
FAQ’s :-
Q1. भक्ति काल कितने प्रकार के होते हैं ?
Ans- भक्ति काल दो प्रकार के होते हैं, जिसमें सगुण भक्ति काल और निर्गुण भक्ति काल शामिल है।
Q2. भक्ति काल के प्रमुख कवि कौन–कौन है ?
Ans- भक्ति काल के प्रमुख कवि सूरदास कबीरदास नंददास तुलसीदास मीराबाई इत्यादि है।
Q3. भक्ति काल का दूसरा नाम क्या है ?
Ans- भक्ति काल का दूसरा नाम पूर्व मध्यकाल है।
Q4. भक्ति काल के जनक कौन है ?
Ans- ऐसा कहा जाता है, की भक्ति आंदोलन यानी भक्ति काल की शुरुआत अलवर और नयनार संतो द्वारा की गई थी, जो कि दक्षिण के निवासी थे।
निष्कर्ष :-
आज के इस लेख में हमने Bhakti Kaal Ki Visheshtayen के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की है। उम्मीद है कि इस लेख के माध्यम से आपको भक्ति काल एवं भक्ति काल के प्रमुख कवियों के बारे में सभी आवश्यक जानकारियां मिल पाई होगी।
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