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Congress ka vibhajan kab hua – कांग्रेस का विभाजन कब हुआ था ?

by Pritam Yadav

Congress ka vibhajan kab hua :- हम सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में आधुनिक भारत के इतिहास के बारे में पढ़ा है और हम यह भी जानते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक बड़ा योगदान रहा है।

कांग्रेस पार्टी की स्थापना होने के कुछ वर्षों के बाद ही इस पार्टी का विभाजन हो गया था, परंतु क्या आप जानते हैं, कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने में भूमिका निभाने वाले congress party ka pratham vibhajan kab hua ?

यदि नहीं, तो आप इस लेख को आप अंत तक जरूर पढ़े, क्योंकि इस लेख के माध्यम से आप कांग्रेस पार्टी से जुड़ी जानकारी प्राप्त करेंगे और साथ ही जानेंगे कि congress party ka pratham vibhajan kab hua ?


कांग्रेस  का पहला विभाजन कब हुआ ? ( congress party ka pratham vibhajan kab hua )

कांग्रेस पार्टी को अपनी स्थापना के कुछ सालों के बाद ही विभाजन का सामना करना पड़ा। 26 दिसंबर 1907 को कांग्रेस पार्टी का प्रथम विभाजन हुआ था। सूरत विभाजन के नाम से भी जाना जाता है।


कांग्रेस का विभाजन किस अधिवेशन में हुआ ?

कांग्रेस की स्थापना होने के बाद हर साल भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के द्वारा अधिवेशन आयोजित किए जाते थे और हर वर्ष की तरह सन् 1907 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा गुजरात के सूरत में राष्ट्रीय अधिवेशन किया जा रहा था और इसी अधिवेशन में कांग्रेस का दो भागों में विभाजन हो गया।

इस विभाजन के परिणाम स्वरूप नरम दल और गर्म दल बने। कांग्रेस पार्टी के इस बंटवारे को सूरत विभाजन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि विभाजन के समय कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन सूरत में चल रहा था।

कांग्रेस पार्टी के इतिहास में इस दिन को कल दिन के रूप में भी माना गया है। विभाजन के समय इस अधिवेशन के अध्यक्ष राज बिहारी घोष थे।


कांग्रेस पार्टी का प्रथम विभाजन क्यों हुआ ?

वैसे तो कांग्रेस पार्टी के विभाजित होने के बहुत सारे कारण थे, परंतु जो कारण सबसे अधिक उत्तरदाई रहे, वह निम्नलिखित थे :-

  • कॉन्ग्रेस के पहले विभाजन का सबसे बड़ा कारण था कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी भाग में अध्यक्ष पद के लिए चल रही राजनीति। 1907 के अधिवेशन से पहले ही कांग्रेस पार्टी दो भागो में विभाजित हो चुकी थी जिसमें से पहले गुट का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक कर रहे थे और दूसरे गुट का नेतृत्व मोतीलाल नेहरू कर रहे थे।
  • कांग्रेस में विभाजन का दूसरा कारण कांग्रेस पार्टी में दो अलग-अलग विचारधाराओं का उत्पन्न होना था। किस पार्टी में कुछ कार्यकर्ता अन्य कार्यकर्ताओं से अलग सोच रखते थे।
  • कांग्रेस के विभाजन का तीसरा कारण यह रहा कि कांग्रेस पार्टी के कुछ उग्रवादी नेता लाला लाजपत राय या बाल गंगाधर तिलक में से किसी एक को कोलकाता अधिवेशन का अध्यक्ष बनना चाहते थे। परंतु अन्य सदस्यों के विरोध के कारण ऐसा ना हो सका। इसीलिए दादा भाई नौरोजी को उस समय 1906 में कोलकाता अधिवेशन में अध्यक्ष बनाया गया था।
  • कांग्रेस पार्टी में विभाजन का चौथा कारण स्वदेशी आंदोलन का विस्तार पूरे देश में ना किया जाना भी था। इस पार्टी के कुछ नेता चाहते थे कि स्वदेशी आंदोलन को पूरे भारत में लागू किया जाए, परंतु सभी सदस्य इस के लिए सहमत नहीं थे जिसके कारण पार्टी का विभाजन हुआ।
  • कांग्रेस के विभाजन का पांचवा कारण यह था कि इस पार्टी में कुछ सदस्य चाहते थे कि अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंसा अपनाई जाए, परंतु कांग्रेस पार्टी के नरम दल के नेताओं का मानना था कि इससे भारतीय लोगों को अधिक नुकसान होगा, क्योंकि अंग्रेजों के पास सैन्य शक्ति अधिक है।

इसीलिए वह अहिंसा के साथ ही अंग्रेजों की सत्ता भारत से हटाना चाहते थे जो गरम दल को बिल्कुल भी रास नहीं आया। इसी कारणों से 1907 मे सूरत अधिवेशन में कांग्रेस को प्रथम विभाजन देखना पड़ा।

  • कांग्रेस के विभाजन का एक कारण यह भी था कि कांग्रेस के उग्रवादी नेता 1907 के अधिवेशन को महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित करवाना चाहते थे। जिसमें वह चाहते थे कि लाला लाजपत राय बाल गंगाधर तिलक में से किसी एक को अध्यक्ष बनाया जाए।
  • कांग्रेस पार्टी के विभाजन का एक और कारण यह था कि राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के द्वारा उग्रवादी नेताओं को हमेशा शक की दृष्टि से देखा जा रहा था क्योंकि वह अहिंसा का पालन नहीं कर रहे थे और कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से विपरीत चल रहे थे।

कांग्रेस का दूसरा विभाजन 1918

जैसा कि हमने ऊपर ज्यादा कांग्रेस पार्टी का पहला विभाजन 1907 में हुआ था, परंतु अक्सर लोगों के मन में यह प्रश्न रहता है कि क्या कांग्रेस का दूसरा विभाजन हुआ ?

तो इसका उत्तर हां है, कांग्रेस का दूसरा विभाजन 1918 में हुआ था जो महाराष्ट्र के मुंबई अधिवेशन में हुआ था।


क्या कांग्रेस पार्टी का तीसरी बार भी विभाजन हुआ था ?

जैसा कि अपने ऊपर के लेख में जाना कि कांग्रेस पार्टी का पहला विभाजन सूरत अधिवेशन में 1907 में हुआ था और इसका दूसरा विभाजन मुंबई अधिवेशन में 1918 में हुआ था।

इसके अलावा कांग्रेस का विभाजन 1969 में भी  तीसरी बार हुआ था, परंतु यह विभाजन चुनाव की राजनीति के कारण हुआ था। इसीलिए बहुत सारे इतिहासकारों के द्वारा कांग्रेस के इस विभाजन को तीसरे विभाजन के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था। अतः कांग्रेस का तीसरी बार विभाजन हुआ परंतु वह स्वीकार नहीं किया गया।


कांग्रेस की सामान्य जानकारी

  • कांग्रेस का नाम पहले इंडियन नेशनल यूनियन था। बाद में दादाभाई नौरोजी द्वारा इस संस्था का नाम बदलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस कर दिया गया।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया था और यह अधिवेशन 1825 में 28 दिसंबर से 31 दिसंबर तक हुआ था।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अधिवेशन में 72 सदस्यों ने भाग लिया था।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज अधिकारी ए ओ ह्यूम ने 1885 में 28 दिसंबर को की थी।

निष्कर्ष :-

दोस्तों, आज के इस लेख में आपने जाना की congress party ka pratham vibhajan kab hua. यदि यह जानकारी आपको पसंद आई है तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें।

ऊपर दिए गए लेख से संबंधित यदि आप कोई प्रश्न हमसे पूछना चाहते हैं या हमें कोई सुझाव देना चाहते हैं या फिर किसी अन्य विशेष विषय पर जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं। हम आपके द्वारा दिए गए सुझाव पर जल्द से जल्द लेख प्रस्तुत करेंगे।


FAQ’s :-

Q1. कांग्रेस पार्टी का प्रथम विभाजन कब हुआ था ?

Ans. कांग्रेस पार्टी का प्रथम विभाजन सूरत अधिवेशन में सन 1907 में हुआ था।

Q2. कांग्रेस पार्टी का दूसरा विभाजन कब हुआ था ?

Ans. कांग्रेस पार्टी का दूसरा विभाजन मुंबई अधिवेशन में सन 1918 में हुआ था।

Q3. कांग्रेस पार्टी की स्थापना किसने की थी ?

Ans. कांग्रेस पार्टी की स्थापना एक अंग्रेज अधिकारी ए ओ ह्यूम के द्वारा की गई थी।

Q4. 1960 के सूरत अधिवेशन के परिणाम स्वरूप क्या हुआ था ?

Ans. सूरत अधिवेशन के परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी दो भागों में बढ़ 
चुकी थी, जिसमें पहला उग्रवादी नेताओं का था, जो गर्म दल के रूप में जाना गया 
और दूसरा भाग नरमपंथी नेताओं का था जिसे नरम दल के रूप में जाना गया।

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