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अनिल कुमार मिश्र

Covid19: गेमचेंजर 2-डीजी दवा बनाने में डॉ. अनिल मिश्र की अहम भूमिका, जानिए इनके बारे में सबकुछ

by Sneha Shukla

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली

द्वारा प्रकाशित: संजीव कुमार झा
अपडेटेड सन, 09 मई 2021 03:57 AM IST

सार

डॉ। अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया।

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शनिवार को कोरोना की 2-डीजी दवा काफी सुर्खियों में रही। क्लिनिकल परीक्षण में सामने आया है यह दवा अस्पताल में भर्ती रोगियों के तेजी से ठीक होने में मदद करता है, अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता करता है। इस दवा को बनाने में डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। अनिलिश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ। अनिल मिश्र के मुताबिक ये दवा बच्चों को भी दी जा सकती है और कोरोना भी ठीक होगा। केंद्र ने क्लीनिकल ट्रायल के बाद इसे मंजूरी दे दी है। आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर डॉ। अनिल मिश्र हैं जिन्होंने कोरोना रोगियों के लिए इस तरह की गेमचेंजर दवा बनाई है …

डॉ। अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया। इसके बाद वे फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फॉनो थे। इसके बाद वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ स्लोवेन विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉस्टरल फेलो रहे। वे 1994- 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक रहे।

वर्ष 1997 में डीआरडीओ से जुड़े
डॉ। अनिलिश 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन और एलाइड साइंसेज में शामिल हुए। वह 2002-2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख रहे।

वर्तमान में फिर से डीआरडीओ में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत हैं
डॉ। अनिलिश वर्तमान में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साइक्लोट्रॉन और रेडियो रसायन विज्ञान साइंसेज बाल्डो में काम करते हैं। अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजना ‘आनविक नकल जांच का विकास’ है।

पानी में घोलकर पीना दवा होगी
2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैक में उपलब्ध होगा। यह पानी में घोलकर पीना होता है। डीआरडीओ के अनुसार 2-डीजी दवा वायरस से हानिकारक रोगी की कोशिका में जमा हो जाता है और उसको और बढ़ने से रोकती है। बिल्डिंग सेल के साथ मिलकर यह एक तरह से सुरक्षा दीवार बना देती है। इससे विषाणु उस कोशिका के साथ ही अन्य हिस्से में भी फैल नहीं पाएगा।

इस तरह के वायरस वायरस
यह दवा लेने के बाद रोगी की अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी। विशेषज्ञों के अनुसार अगर वायरस को शरीर में ग्लूकोज न मिले तो उसकी वृद्धि रुक ​​जाएगी। डीआरडीओ के डॉ। एके मिश्रा ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि वर्ष 2020 में ही कोरोना की इस दवा को बनाने का काम शुरू किया गया था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में जब कोरोना का प्रकोप जारी किया गया था, उसी दौरान डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने हैदराबाद में इस दवा की टेस्टिंग की थी।

विस्तार

शनिवार को कोरोना की 2-डीजी दवा काफी सुर्खियों में रही। क्लिनिकल परीक्षण में सामने आया है यह दवा अस्पताल में भर्ती रोगियों के तेजी से ठीक होने में मदद करता है, अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता करता है। इस दवा को बनाने में डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। अनिलिश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ। अनिल मिश्र के मुताबिक ये दवा बच्चों को भी दी जा सकती है और कोरोना भी ठीक होगा। केंद्र ने क्लीनिकल ट्रायल के बाद इसे मंजूरी दे दी है। आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर डॉ। अनिल मिश्र हैं जिन्होंने कोरोना रोगियों के लिए इस तरह की गेमचेंजर दवा बनाई है …

डॉ। अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया। इसके बाद वे फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फॉनो थे। इसके बाद वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ स्लोवेन विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉस्टरल फेलो रहे। वे 1994- 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक रहे।

वर्ष 1997 में डीआरडीओ से जुड़े

डॉ। अनिलिश 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन और एलाइड साइंसेज में शामिल हुए। वह 2002-2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख रहे।

वर्तमान में फिर से डीआरडीओ में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत हैं

डॉ। अनिलिश वर्तमान में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साइक्लोट्रॉन और रेडियो रसायन विज्ञान साइंसेज बाल्डो में काम करते हैं। अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजना ‘आनविक नकल जांच का विकास’ है।

पानी में घोलकर पीना दवा होगी

2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैक में उपलब्ध होगा। यह पानी में घोलकर पीना होता है। डीआरडीओ के अनुसार 2-डीजी दवा वायरस से हानिकारक रोगी की कोशिका में जमा हो जाता है और उसको और बढ़ने से रोकती है। बिल्डिंग सेल के साथ मिलकर यह एक तरह से सुरक्षा दीवार बना देती है। इससे विषाणु उस कोशिका के साथ ही अन्य हिस्से में भी फैल नहीं पाएगा।

इस तरह के वायरस वायरस

यह दवा लेने के बाद रोगी की अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी। विशेषज्ञों के अनुसार यदि वायरस को शरीर में ग्लूकोज न मिले तो उसकी वृद्धि रुक ​​जाएगी। डीआरडीओ के डॉ। एके मिश्रा ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि वर्ष 2020 में ही कोरोना की इस दवा को बनाने का काम शुरू किया गया था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में जब कोरोना का प्रकोप जारी किया गया था, उसी दौरान डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने हैदराबाद में इस दवा की टेस्टिंग की थी।

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