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TV पर कोरोना से जुड़ी खबरें न दिखाने की मांग वाली याचिका खारिज, दिल्ली HC ने कहा- मौत के आंकड़े बताना नकारात्मकता नहीं

HC ने कहा- दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, तल्ख टिप्पणी करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया

by Sneha Shukla

<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> नई दिल्ली: दिल्ली में कोरोना के कारणों के बारे में गुरुवार को भी दिल्ली हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई का सिलसिला जारी रहा। गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कड़ी टिप्पणी करने के साथ ही नाराजगी भी जाहिर की। कोर्ट ने ये टिप्पणियां दीं कि मरीज की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जिसमें मरीज ने जल्द से जल्द आईसीयू बिस्तर देने की मांग की थी क्योंकि मरीज का ऑक्सीजन लेवल 40 तक गिर गया था। मरीज की दलील थी कि अगर जल्दी आईसीयू बिस्तर नहीं मिला तो उसकी जान को खतरा हो सकता है।

आईसीयू बेड के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले मरीज की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे सामने जो मरीज आया है उसको जल्द से जल्द आईसीयू बिस्तर की जरूरत है क्योंकि उसका ऑक्सीजन लेवल 40 पर पहुंच गया है। इस मरीज़ को जल्द ही ऑक्सीजन वेंटिलेटर की ज़रूरत है लेकिन वर्तमान में अस्पताल में वह उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार 21 के तहत हर किसी को जीवन जीने का अधिकार है। लेकिन कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों के कारण हालात खराब हो गए हैं। वहीं दूसरी वेव के दौरान ज्यादातर लोगों के फेफड़े पर सीधा उसका असर हो रहा है। जिसकी वजह से मरीज़ को निमोनिया हो रहा है और जब यह स्थिति खराब हो जाती है तो मरीज को जल्द ही जल्द आईसीयू बिस्तर और वेंटिलेटर की ज़रूरत होती है। यह जिम्मेदारी सरकारों की है कि वह मरीजों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं दे। लेकिन वर्तमान में अचानक से बड़ी संख्या में सामने आए मामलों की वजह से यह सुविधा देने में दिक्कत आ रही है।

राज्य की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है- कोर्ट

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कोरोना की वजह से राज्य की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है और हकीकत सामने आ गई है। लेकिन कोर्ट रोगी से यह नहीं कह सकता कि राज्य के पास स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है लिहाजा आप को इलाज नहीं मिल सकता है। & nbsp;

इस बीच दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी पर दिल्ली सरकार के वकील ने कोर्ट से अपील की कि कोर्ट ऐसी टिप्पणी ना करें कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई है। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हमारे सामने सिर्फ ऑक्सीजन की दिक्कत थी, जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर्फ ऑक्सीजन ही कारण से नहीं। कोर्ट ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि अब आप शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर रहे हैं। आज हमें आपको जवाब देना होगा। जब आप इस स्थिति का बचाव करेंगे, तो यह दिखाता है कि "हम राजनीति से ऊपर नहीं उठ रहे"। कोर्ट ने कहा कि हम हमेशा ही दोषी मानते हैं"पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> कोर्ट ने कहा कि कुछ दिन पहले जब एक वकील के रिश्तेदार की मौत हुई तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे वह हम से मदद मांगते रहे। हम सबका यही मानना ​​था कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई है। जिसके बाद दिल्ली सरकार के वकील ने अपने बयान को लेकर माफी मांगी। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आपका स्वास्थ्य बजट पर कुल कितना खर्च हो रहा है।

कोर्ट ने कहा कि हमने शपथ ली है लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रखने की। समय पर अच्छे से अच्छा इलाज मिलना का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को मिल सके। कोर्ट ने कहा कि इस वक्त राज्य में इस मरीज के जैसे हजारों ऐसे लोग हैं जिनको मदद की जरूरत है लिहाजा हम सिर्फ एक व्यक्ति के मामले में आदेश नहीं दे सकते क्योंकि इससे बाकी मरीजों के अधिकारों का हनन होगा। लिहाज़ा कोर्ट दिल्ली सरकार को निर्देश दे रही है कि वह दिल्ली के सभी नागरिकों को ज़रूरत के हिसाब से अच्छे से अच्छा इलाज मुहैया कराए। कोर्ट ने कहा कि जरूरतमंद मरीजों को ऑक्सीजन बेड आईसीयू और वेंटिलेटर उपलब्ध होना चाहिए जो उनका अधिकार है। इस बीच कोर्ट ने इसे भी साफ कर दिया कि क्योंकि एक कोर्ट ने यह आदेश एक मरीज की याचिका पर दिया है इसका मतलब यह नहीं है कि किसी भी मरीज को प्राथमिकता दे दी जाए और बाकियों को अनदेखा कर दिया जाए

इससे पहले गुरुवार को परीक्षण के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने रेमेडिसीविर की तरह आवश्यक इंजेक्शन और दवाइयों के लिए पोर्टल शुरू करने के मुद्दे पर कोर्ट ने वहां मौजूद अधिकारियों से सवाल पूछा तो अधिकारियों ने जवाब दिया कि वर्तमान में वह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा निर्देश या इंतजार कर रहे हैं। रहे हैं कि किन दवाओं को इस पोर्टल पर जोड़ा जा सकता है। & nbsp;

रेमेडिसीविर को लेकर सामने आई ये बात

इसी तरह एक और वकील ने कोर्ट को जानकारी दी कि आज की तारीख में हम को यह पता ही नहीं है कि रेमेडिसीविर का कितना स्टॉक मौजूद है और इसकी वजह से कालाबाजारी बढ़ रही है। कोर्ट ने कहा कि हम यह मानकर चल रहे थे कि पूरी सप्लाई चेन के बारे में सब को जानकारी होगी। एनआईसी के अधिकारी ने कहा कि अब ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि रोगी के अटेंडेंट के पास मैसेज होगा। उससे पूछा जाएगा कि जो रेमेडिसीवीर इंजेक्शन लिया गया उसका क्या हुआ। इसके साथ ही सिस्टम के जरिए अस्पताल भी बताएंगे कि उन्हें जितने रेमेडीसीवीर इंजेक्शन उपलब्ध कराए गए थे, उनका क्या स्टेटस है। अगर अस्पताल वह जानकारी नहीं देगा तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।

इस बीच कोर्ट ने सवाल पूछा कि क्या रेमेडिसीविर इंजेक्शन आईसीयू में भर्ती मरीजों को भी दिया जा सकता है। कोर्ट को बताया गया है कि यह आईसीयू और नॉन आईसीयू दोनों मरीजों को दिया जा सकता है। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि हम सिर्फ रेमेडीसीविर को लेकर ही चर्चा करें क्योंकि उसके अलावा भी कई दवाइयां हैं जो जरूरी है। हाई कोर्ट को बताया गया कि पोर्टल कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि जैसे ही उस पर मांगेगी कुछ घंटों के अंदर ही वह दवा या इंजेक्शन रोगी के लिए उपलब्ध हो जाएगा। रेमेडीसीवीर के साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि टोसीलिज़ुमाब को भी सिस्टम पर लाया जाना चाहिए। ट्रांसपेरेंसी होनी चाहिए, स्टॉक बहुत कम है। पोर्टल में इस बात का ज़िक्र किया जाना चाहिए और उसी प्रक्रिया के तहत इसको लोगों को उपलब्ध करवाना चाहिए।

इस बीच कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मरीज की RTPCR रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं है और उसमें लक्षण दिख जाते हैं तो उन लोगों को भी प्राथमिकता से इलाज देना जरूरी है। परीक्षण के दौरान कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट को सलाह देते हुए कहा कि ऐसी व्यवस्थाजाम होना चाहिए कि दवा के लिए अस्पतालों को भटकना न पड़े। अस्पतालों के पास पहले से ही थोड़ा स्टॉक होना चाहिए, जिससे उसे रोगियों की दवा से दवा दे सके।

प्लान बैंक बनाने की बात कही गई

गुरुवार की सुनवाई के दौरान कोरोना से पिछले एक-दो दिनों के दौरान केवल एक वकील ने अपने अनुभव के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट में योजनाकार बैंक और बनाने की बात कही। वकील ने बताया कि उन्हें प्लॉस की जरूरत थी और 16 लोगों का प्लॉट देखने के बाद उन्हें एक शख्स का प्लॉट उपलब्ध हो गया। यह भी मुमकिन नहीं है कि हर बार हर मरीज का अटेंडेंट या रिश्तेदार वसंत कुंज तक योजनाकार लेने के लिए दौड़ लगाते रहे। जिस पर कोर्ट ने सवाल पूछा कि ऐसा मुमकिन नहीं है कि अस्पतालों में ही प्लैंक बैंक बनाया जाए। इस सिलसिले में कोर्ट को जानकारी दी गई कि आईएलबीएस अस्पताल में प्लॉट एक्सिल बैंक है जहां पर लोग एक ब्लड ग्रुप का प्लॉट देकर दूसरे ग्रुप का प्लॉट ले सकते हैं। कोरोना से हाल ही में ठीक हुए वकील ने कोर्ट को बताया कि हालत यह है कि आज की तारीख में लोग प्लॉट देने के लिए ₹ 80,000 से ₹ ​​90,000 तक ले रहे हैं।

इस बीच अस्पताल में बेडों की कमी को दूर करने के लिए सरकारी बोलों में व्यवस्थाज़म करने के सुझाव पर दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि वह तो दिल्ली सरकार कर लेगी लेकिन मरीजों की देखभाल करने वाले लोगों की कमी को पूरी तरह से होना चाहिए। क्योंकि वर्तमान में डॉ और नर्स अपनी क्षमता से बहुत काम कर रहे हैं और इसके चलते वह खुद भी बीमार पड़ रहे हैं और थक रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि हम को सलाह दी गई कि रिटायर्ड डॉक्टरों को इसमें लगाया जा सकता है लेकिन हमको यह भी ध्यान में रखना होगा कि रिटायर डॉक्टरों की उम्र और उनकी सेहत कैसी है और हमको उनके निजी फैसले का भी सम्मान करना होगा। रही बात मेडिकल के छात्रों को ड्यूटी में लगाने की तो यह फैसला सरकार को लेना है क्योंकि वर्तमान में मौजूदा नियमों के मुताबिक पढ़ाई करने वाले छात्रों को ड्यूटी में नहीं लगाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को इस बाधा को दूर करना होगा। इस बीच हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस आपदा के वक्त में भी हम सब एक साथ नहीं खड़े हो पा रहे हैं इसी कारण से कालावर्री हो रही है।

सिस्टम का पूरी तरह से फेलियर दिख रहा है- कोर्ट

परीक्षण के दौरान एक वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट को उस आरटीआई के बारे में भी जानकारी दी जिसमें कहा गया कि जुलाई 2020 से लेकर अप्रैल 2021 के बीच दिल्ली सरकार ने भी कुछ नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि ये तो हमको दिख ही रहा है क्योंकि इसके लिए किसी आरटीआई की जरूरत नहीं है। यह सिस्टम का पूरी तरह से फेलियर दिखा रहा है। ऑक्सीजन और वेंटीलेटर बेड को लेकर कुछ भी नहीं किया गया। इस बीच दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर अभी भी कस्टम क्लीयरेंस के इंतजार में पोर्ट पर पड़े हैं। जिस पर कोर्ट के सलाहकार ने बताया कि 95,000 क्लियर हो गए हैं जबकि 20,000 अभी भी फंसे हुए हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में कोर्ट के सलाहकार ने कहा सरकार के मुताबिक कल दिल्ली को 730MT ऑक्सिजन मिल गई लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे पास इसलिए मैनपावर है।

परीक्षण के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली के अस्पताल में बेड की सूची को लेकर एक वास्तविकता परीक्षण भी किया। परीक्षण के दौरान कोर्ट ने कहा कि हमको जानकारी मिली है कि वर्तमान में जीटीबी अस्पताल में काफी बिस्तर खाली हैं। जिस पर कोर्ट के सलाहकार ने कहा कि उसकी सही जानकारी कोर्ट को बताती है। कुछ देर बाद कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने ज़ीटीबी में पता किया तो पता चला कि वहां पर बिस्तर उपलब्ध नहीं था। जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें लगता है कि हर अस्पताल में एक ऐसा अधिकारी होना चाहिए जिसकी जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि हर आने वाले फोन को वह रिसीव करें और बिस्तर की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी दें। <पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> हर रोगी अदालत आने लगा तो उसके साथियों का अंबार लग जाएगा- HC

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि आप अपने कुछ अधिकारियों का उपयोग करें। आपके वन विभाग के अधिकारी जो इंजीनियर भी हैं उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें से कुछ घर से भी काम कर सकते हैं और कुछ को छान में भी आना होगा। इस बीच में दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि जल्द ही दवा के लिए पोर्टल शुरू हो जाएगा जिससे दवाओं की किल्लत भी दूर हो जाएगी। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि अगर एक बार दिल्ली को उसकी मांग के मुताबिक ऑक्सीजन मिलने लगती है तो हम ऑक्सीजन बैंक बनाने पर भी विचार कर सकते हैं। इसके साथ ही दिल्ली सरकार के वकील में बताया कि वर्तमान में कोर्ट के सुझाव के आधार पर इस आपदा के वक्त में मोहल्ला क्लीनिक को किस तरह से और बेहतर किया जा सकता है कि पर चर्चा चल रही है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सवाल पूछा था कि रिटायर्ड डॉक्टर की सेवाएं लेने के मुद्दे पर जो चर्चा हुई थी उस पर क्या हुआ, इस पहलू में और ज्यादा देरी नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार को इस मामले में एक अपील जारी करनी चाहिए थी जो अब तक नहीं की गई। जिस पर दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि इसको लेकर ड्राफ्ट तैयार हो गया है। उम्मीद है कि कल इस सिलसिले में बड़े-बड़े विज्ञापन जारी होंगे। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोरोना को लेकर लोगों को भी जागरूक करना होगा। बड़ी संख्या में लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है। परीक्षण के दौरान को टिप्पणी करते हुए कहा कि हमको लोगों की दिक्कतों का अंदाजा है लेकिन हम किसी एक मरीज या कुछ लोगों को लेकर आदेश जारी नहीं कर सकते क्योंकि इससे बाकी लोगों के मतभेद का हनन होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर हर मरीज अदालत में आने वाला है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।

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