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एक तरफ पड़ोसी देश से कूटनीतिक संबंधों की फिक्र और दूसरे पक्ष TN में होने वाले विधानसभा चुनावों के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग से दूर रहने का ही फैसला लिया। मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ हुई वोटिंग से भारत गैरहाजिर रहा। श्रीलंका सरकार की ओर से युद्ध अपराध और मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की संस्था में यह लड़ाई हुई, जिसमें भारत के पड़ोसी देश के खिलाफ प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। कुल 47 वोटों में से 22 वोट इस प्रस्ताव के पक्ष में थे। भारत और नेपाल सहित 13 देशों ने वोटिंग से गैरहाजिर रहने का फैसला लिया, जबकि 11 वोट इस प्रस्ताव के खिलाफ थे।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्री के खिलाफ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है। साफ है कि श्रीलंका के लिए यह एक बड़ा झटका है। हालांकि पाकिस्तान और चीन जैसे देशों ने उसके पक्ष में वोटिंग की है। इसके अलावा रूस ने भी श्री का समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था में मतदान से पहले श्री की ओर से भारत को साधने का प्रयास किया गया था, लेकिन उसे कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। दरअसल भारत सरकार टीएम के राजनीतिक दलों की ओर से प्रस्ताव था कि वह श्री के खिलाफ वोटिंग करे। ऐसी स्थिति में भारत ने लोकल राजनीति और वैश्विक समीकरण दोनों को ही न बिगाड़ने का फैसला लेते हुए वोटिंग से दूर रहना ही उचित समझा है।
इससे पहले 2012 और 2013 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया था। दरअसल बीते कुछ सालों में श्रीलंका और चीन के बीच नजदीकी बढ़ गई है, ऐसे में एक बार फिर से द्वीपीय देश के खिलाफ वोटिंग उसे ड्रैगन के और करीब ले जा सकती थी। 2014 में भारत ने श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव से दूर रहने का फैसला लिया था। बता दें कि भारत सरकार हमेशा ही श्रीलंका में तमिलों के समान अधिकारों की पक्षधर रही है।
मतदान से दूर रहने पर क्या बोले राजनयिक: पिछले दिनों में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने श्री की एकता की बात करते हुए सभी को समान अधिकार देने का संदेश दिया था। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के सदस्य पवन बाढ़े ने कहा कि हम भारत में तमिलों के लिए न्याय, समानता, सम्मान और शांति के पक्षधर रहे हैं। इसके अलावा हम श्री की एकता, एकता और स्थिरता चाहते हैं।
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