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Yada yada hi dharmasya meaning – yada yada hi dharmasya sloka

by Pritam Yadav

Yada yada hi dharmasya meaning | yada yada hi dharmasya sloka :- भगवत गीता का सबसे महत्वपूर्ण श्लोक यदा यदा ही धर्मस्य का अर्थ (Yada yada hi dharmasya meaning) क्या है, इस श्लोक कब पढ़ा जाता है तथा हिंदू धर्म के अनुसार इस श्लोक के पीछे का इतिहास क्या है ? आदि के बारे में हम यहाँ विस्तार पूर्वक जानकारी देंगे।

तो चलिए फिर बिना देर किए इस लेख को शुरू करते हैं और जानते हैं, yada yada hi dharmasya sloka का हिंदी अनुवाद क्या है ?


यदा यदा ही धर्मस्य का अर्थ क्या होता है ? – Yada yada hi dharmasya meaning

श्रीमद् भागवत गीता के चौथे अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जब-जब धर्म की हानि होती है और धर्म की वृद्धि होती है तब तब में स्वयं इस संसार में प्रकट लेता हैं ।

इस श्लोक का शाब्दिक अर्थ है –

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

अर्थ इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि जब जब इस संसार में धर्म की हानि होती है, तब तब इस धरती पर अत्याचार होता है, लोगों का विनाश होता है। जैसे जैसे अत्याचार बढ़ता है, लोग धर्म से दूर होते जाते हैं। ऐसे समय में भगवान श्रीकृष्ण धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं और इस संसार में आते हैं।

अभ्युत्थानमिहिंसां धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्

अर्थ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, कि मैं धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेता हूं। मैं साधुओं की रक्षा के लिए और पापियों, दुष्टों के विनाश के लिए हर युग में, हर कालखंड में मैं बार-बार अवतार लेता हूं और धर्म की स्थापना करता हूं तथा समस्त संसार का कल्याण करता हूं।

परित्राणाय साधूनां

अर्थ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं साधुओं की रक्षा करता हूं। साधु वे लोग हैं जो धर्म का पालन करते हैं। वे समाज के लिए प्रकाश का स्त्रोत होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रक्षा प्रदान करते हैं।

विनाशाय दुष्कृताम्

अर्थभगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं दुष्टों का विनाश करता हूं। दुष्ट वे लोग हैं जो धर्म का उल्लंघन करते हैं। वे समाज के लिए अंधकार का स्त्रोत होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण उन्हें विनाश प्रदान करते हैं।

धर्मसंस्थापनार्थाय

अर्थ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं धर्म की स्थापना करता हूं। धर्म ही समाज का आधार है। धर्म के बिना समाज अस्थिर हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण धर्म की स्थापना करके समाज को स्थिरता प्रदान करते हैं।

सम्भवामि युगे युगे

अर्थ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं युग-युग में अवतार लेता हूं। जब भी धर्म की हानि होती है, मैं अवतार लेकर धर्म की रक्षा करता हूं, पपिया का संहार करता हूं।

यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के अवतारों की महिमा का वर्णन करता है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि धर्म की रक्षा करना आवश्यक है, क्योंकि जब धर्म की हानि होती है, तो समाज में अशांति फैलती है।


यदा यदा हि धर्मस्य पूर्ण श्लोक

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |

अभ्युत्थानमिहिंसां च धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् |

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||”


यदा यदा हि धर्मस्य की व्याख्या

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक भगवत गीता के चौथे अध्याय में आता है। यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया एक उपदेश है। जिसमें भगवान श्री कृष्णा बताते हैं, कि जब-जब धर्म का पतन होता है और धर्म का उदय होता है, तब तब मैं स्वयं अवतार लेता हूं और धर्म की स्थापना करता हूं।

श्रीमद् भागवत गीता के आठवें श्लोक में अर्जुन से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, मुश्किल और कष्टों से भरे समय में ईश्वर पर सदा विश्वास रखना चाहिए। ऐसे लोग जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, अच्छे कर्म करते हैं, उनकी मैं दुष्टों से रक्षा करता हूं और इस संसार पर उपलब्ध सभी अधर्मियों, पपिया और दुष्टों का विनाश करने के लिए मैं हर युग में, हर कालखंड में अवतार लेता हूं।

इस श्लोक का इतिहास आज से कई सौ साल अधिक पुराना है। यह श्लोक सदियों से भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह श्लोक भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है।


यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक

इस श्लोक के कई अलग-अलग अर्थ प्राचीन पुराणों में देखने को मिलते है। कुछ लोग इसे केवल धार्मिक अर्थ में व्याख्या करते हैं ,जबकि अन्य इसे व्यापक अर्थ में व्याख्या करते हैं।

धार्मिक अर्थ में इस श्लोक का मतलब है, कि भगवान कृष्ण धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं, वह अधर्म का नाश करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।

वहीं यदि बात की जाए इस श्लोक के व्यापक अर्थ की, तो इस श्लोक का अर्थ है कि जब-जब अच्छाई का पतन होता है और बुराई का उदय होता है, तब तक कोई ना कोई महापुरुष या नेता अवतार लेता है और अच्छाई की स्थापना करता है।

यह श्लोक आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि सदियों पहले हुआ करता था। यह श्लोक हमें याद दिलाता है, कि धर्म और अच्छाई की रक्षा के लिए हमेशा संघर्ष करना चाहिए।


यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक कब पढ़ा जाता हैं ?

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक को कई अलग-अलग अवसरों पर पढ़ना चाहिए, जिनमें से कुछ अवसरों के बारे में हम यहां चर्चा कर रहे हैं। जैसे की :-

  • हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान इस श्लोक का उच्चारण करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कई हिंदू समाज में नवरात्रि के दौरान इस श्लोक को पढ़ा जाता है। आपको बता दे, नवरात्रि 9 दिनों का त्यौहार होता है, जो मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है।
  • यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक भारतीय सेना में भी पढ़ा जाता है, जी हां अगर आपको नहीं पता तो बता दे, कि अक्सर सैनिकों के शपथ ग्रहण समारोह में इस श्लोक पढ़ा जाता है। यह श्लोक सैनिकों को यह याद दिलाता है, कि वह धर्म और देश की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • अक्सर राज नेताओं के द्वारा दिए गए भाषणों में भी इस श्लोक को पढ़ते देखा गया है। जी हां भारतीय राजनीति में अक्सर नेता अपने भाषण में इस श्लोक का इस्तेमाल करते हैं। यह श्लोक नेताओं को यह याद दिलाता है, कि उन्हें धर्म और न्याय की स्थापना के लिए ही काम करना चाहिए।

FAQ’S :-

Q1. यदा यदा हि धर्मस्य का वर्णन गीता के कौन से अध्याय में हैं ?

Ans - यदा यदा हि धर्मस्य का वर्णन गीता के चौथे अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में है ।

Q2. यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक में “भारत” शब्द का क्या अर्थ है ?

 Ans - यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक में "भारत" शब्द का अर्थ है "संपूर्ण विश्व"। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण 
ने यह बताया है कि वे केवल भारत में ही अवतार नहीं लेते हैं, बल्कि पूरे विश्व में अवतार लेते हैं।

Q3. सबसे शक्तिशाली कृष्ण मंत्र कौन सा है ?

Ans - सबसे शक्तिशाली कृष्ण मंत्र है, "हरे कृष्ण महामंत्र"

Q4. श्रीमद् भागवत गीता का प्रथम श्लोक कौन सा है ?

Ans :- श्रीमद् भागवत गीता का प्रथम श्लोक है, धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव:। मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय।

Q5. यदा यदा हि धर्मस्य का अर्थ क्या है ?

Ans - यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक का अर्थ है - जब जब धर्म की हानि होती है।

निष्कर्ष :- 

आज के इस लेख में हमने Yada yada hi dharmasya meaning in Hindi के बारे में जाना साथ ही साथ यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक (yada yada hi dharmasya sloka) कब पढ़ा जाता हैं के बारें में भी विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की है उम्मीद करते हैं यह लेख आपको अच्छी तरह से समझ आ गया होगा


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