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अध्ययन: ग्लोबल वार्मिंग से अंटार्कटिक में एक तिहाई आइस शेल्फ के समुद्र में गिरने का खतरा

by Sneha Shukla

एजेंसी, नई दिल्ली।

द्वारा प्रकाशित: जीत कुमार
Updated Sat, 10 Apr 2021 03:10 AM IST

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यदि वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से चार डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचता है तो एक तिहाई अंटार्कटिक आइस शी क्षेत्र के समुद्र में गिरने का खतरा हो सकता है।

एक अध्ययन के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के चलते सभी अंटार्कटिका आइस शी क्षेत्र यानी करी पांच लाख वर्ग किलोमीटर हिस्से पर अस्थिरता का खतरा मंडरा रहा है। इसमें अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 67 प्रतिशत हिस्सा भी शामिल है। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने बताया, प्रायद्वीप पर बची सबसे बड़ी बर्फ की चट्टान लार्सन सी उन चार टुकड़ों में शामिल हैं, जिनके समुद्र में गिरने का खतरा सबसे ज्यादा है। लार्सन सी 2017 में विशालकाय हिमखंड ए 68 से अलग हुआ था।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के शोधकर्ता एला गिलबर्ट ने कहा, आइस शी पृथ्वी से ग्लिहिरों को समुद्र में गिरने से रोकते हैं और समुद्र का स्तर में वृद्धि में इनका योगदान होता है।

उनके गिरने का मतलब होगा कि ग्लिशिरों से समुद्र में इतना पानी गिरेगा कि जिसका अंजाजा भी नहीं लगाया जा सकता। अगर हम तापमान को चार डिग्री की जगह दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर दें तो जोखिम आधा होगा और समुद्र के स्तर में वृद्धि से बच सकते हैं।

गिलबर्ट ने कहा, जब साशा की सतह पर बर्फ पिघलती है तो यह उन्हें काफी नुकसान पहुंचाती है, जिससे उनकी टूटने का खतरा है।

विस्तार

यदि वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से चार डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचता है तो एक तिहाई अंटार्कटिक आइस शी क्षेत्र के समुद्र में गिरने का खतरा हो सकता है।

एक अध्ययन के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के चलते सभी अंटार्कटिका आइस शी क्षेत्र यानी करी पांच लाख वर्ग किलोमीटर हिस्से पर अस्थिरता का खतरा मंडरा रहा है। इसमें अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 67 प्रतिशत हिस्सा भी शामिल है। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने बताया, प्रायद्वीप पर बची सबसे बड़ी बर्फ की चट्टान लार्सन सी उन चार टुकड़ों में शामिल हैं, जिनके समुद्र में गिरने का खतरा सबसे ज्यादा है। लार्सन सी 2017 में विशालकाय हिमखंड ए 68 से अलग हुआ था।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ता एला गिलबर्ट ने कहा, आइस शी पृथ्वी से ग्लेशिरों को समुद्र में गिरने से रोकते हैं और समुद्र का स्तर में वृद्धि में इनका योगदान होता है।

उनके गिरने का मतलब होगा कि ग्लिशिरों से समुद्र में इतना पानी गिरेगा कि जिसका अंजाजा भी नहीं लगाया जा सकता। अगर हम तापमान को चार डिग्री की जगह दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर दें तो जोखिम आधा होगा और समुद्र के स्तर में वृद्धि से बच सकते हैं।

गिलबर्ट ने कहा, जब साशा की सतह पर बर्फ पिघलती है तो यह उन्हें काफी नुकसान पहुंचाती है, जिससे उनकी टूटने का खतरा है।

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