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लोग भूले सामाजिक दूरी का नियम...

रियलिटी चेक : पहली लहर के सबक को भूली दिल्ली, व्यवस्था और व्यवहार जगह-जगह तार-तार

by Sneha Shukla

आज से ठीक एक साल पहले दिल्ली में कोरोना संक्रमण के महज पांच हजार मामले आए थे। उस वक्त पूरी सरकारी महकमा सक्रिय था, जबकि आम लोग घरों में दुबक गए थे। सड़कों पर सैनिटरीकरण आम था और सामाजिक दूरी का भी सभी को रखना था। होम आइसोलेशन में रहने वालों की पड़ोसियों को जानकारी थी। आपदा प्रबंधन की टीमें घर-घर घूमकर मरीजों को सावधानी बरतने का पाठ पढ़ा रही थी, जबकि आज जब सामुदायिक प्रसार हो रहा है, हवा में वायरस होने की बात है, ऑक्सीजन की कमी से लोग तड़प कर अस्पताल की दहलीज पर ही मर रहे हैं। , टनों की संख्या भी लाखों में है, तब सख्ती कम हो गई है। ना तो आम नागरिक अपने कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं और ना ही सरकारी महकमा ही भविष्यत दिखाई दे रहा है।

सड़कों से गायब हैं सैनिटरीकरण मशीन
पिछले वर्ष के संक्रमण व मृत्यु की दर आज की अपेक्षा बेहद कम है। उस समय एमसीडी और दिल्ली सरकार सैनिटरीकरण के लिए बड़े-बड़े गाड़ियां सड़कों पर उतारती थी। भरी दोपहरी में चारों ओर रसायनल का छिड़काव होता था। विशेष रूप से, जिस घर में कोरोना के रोगी होते थे वहाँ आसपास के पैकेटै किट पहनकर कर्मी केमिकल का छिड़काव करते थे, लेकिन आज जब कुछ इलाकों में हर तीन-चार घर को छोड़कर एक घर में पूरे परिवार के साथ लोग रहते हैं तो सरकारी महकमा खामा बैठा है। । छिड़काव वाले वाहन बमुश्किल दिखाई दे देते हैं, जबकि कहा जा रहा है कि हवा में वायरस है। सामुदायिक संक्रमण का दौर है।

को विभाजित मरीजों के घर पर नोटिस तक नहीं हो रहा है चस्पा
सामुदायिक संक्रमण के दौर में कोरोनाटे रोगियों के घर के सामने नोटिस तक नहीं चिपकाया जा रहा है। यह एक तरह से प्रकट नोटिस होता था, ताकि उस फ्लैट से लोग बच कर रहे, लेकिन इससे भी स्थानीय प्रशासन किनारा कर रहा है। सबसे मुश्किल यह है कि डीडीए के आमने सामने के फ्लैट में भी कोई पता चलता है कि कौन घर में है और कौन नहीं। जब मल्टीस्टोरी बोल में एक ही सीढ़ी व एक ही लिफ्ट से लोगों का आना-जाना रहता है।

माइक्रो जोन भी महज दिखावा
पिछले साल जब ट्रैप पास आज के मुकाबले कुछ भी नहीं था तो हर दिन दिल्ली का कोई ना कोई इलाक़मेंट जोन में तब्दील होता था, लेकिन अब माइक्रो कंटेमेंट जोन महज एक शोवा बन कर रह गया है। दिल्ली की कुछ सोसायटी ऐसी हैं, जहां औसतन एक से दो मौत कोरोना की वजह से प्रतिदिन हो रही हैं। कायदे से उस जोन को रेड जोन कर देना चाहिए। बावजूद, डीडीए की सोसायटी में बेरोकटोक लोग घूमते नजर आते हैं।

सामाजिक दूरी के लोग दूर
पिछले साल सामाजिक दूरी के लिए हर दुकान के सामने गोल घेरा बनाया गया था, जहां लोग खुद सामाजिक दूरी के साथ खड़े रहते थे। इस बार दिल्ली की जनता इतनी बेपरवाह है कि सोशल डिस्टेंसिंग का कोई मतलब नहीं है। हर जगह इसकी धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं।

घर मे सेवियों का आना-जाना
कोरोना ट्रांसफर के तेजी से फैलाव के बावजूद सेविका, ड्राइवर व ऑफलाइन ऑफर मैन का आना-जाना हर जगह जारी है। लोग इस कदर बेपरवाह हैं कि एक सेविका तीन-चार जगह काम करती हैं। बावजूद, घर का कामकाज प्रदान करने से मनाही नहीं करते। आरडब्ल्यूए के व्हाट्सएप ग्रुप पर बराबर वाद-विवाद का विषय इस तरह के मामले बने रहे हैं।

कचरा एकत्रित करने वालों को भी सतर्क कर रहे हैं
को विभाजित होने के बावजूद इसके लोग छिप रहे हैं। यहां तक ​​कि प्रतिदिन कचरा लेने वालों को भी नहीं बताते हैं कि उनके घर में कोई सदस्य नहीं हैं। ऐसे में घर का कचरा एकत्रित करने वालों के ऊपर संक्रमण का खतरा है ही साथ ही दूसरे घर के लोगों को भी सहज करने की वजह बन रहे हैं।

केस: 01
मधुलिका गुप्ता का 28 अप्रैल को क्वारंटीन समय पूरा हो गया। पति डॉ। सुबोध गुप्ता पुत्र पार्थ के साथ पूरा परिवार ही सार्थक हुआ था। जब पूरा परिवार होम क्वारंटीन में बनेकर स्वस्थ हो गया तो 2 मई को सरकार की तरफ से दिनेश नाम का व्यक्ति उनके घर में रहने गया। मधुलिका गुप्ता से कहा कि दिल्ली सरकार की तरफ से आया, मुझे 14 दिन आपके घर के सामने रहना है। स्थानीय प्रशासन ने ड्यूटी लगाई है। जब उससे बोला गया कि संक्रमण तो खत्म हो गया है, बावजूद वह मुखर्जी नगर डीडीए सोसायटी गेट पर पहुंचकर कहता है कि मेरी ड्यूटी लगाई गई है।

केस: 02
उत्तरी दिल्ली के डीडीए के एक सोसायटी में कई लोग हैं, लेकिन अस्थिर होने के बावजूद भी लोग नहीं बता रहे हैं। डॉ। अनामिका कहती है कि पड़ोस में रहने वाले एक प्रोफेसर का पूरा परिवार को विभाजित में है। 14 दिन बाद पता चला कि उनका पूरा परिवार है। को विभाजित रोगी इसे प्रकट कर रहे हैं, इसके कारण से ज्यादा स्प्रेड हो रहा है।

केस: 03
तीमारपुर के समीप वैक्सीनेशन सेंटर बनाया गया है, जहां केंद्रीय कर्मियों को भी वैक्सीन दी जा रही है। पूर्व वैज्ञानिक डॉ। जीएल शर्मा कहते हैं कि लोग इतने लापरवाह दिखे कि पता ही नहीं चल रहा था कि कौन कोरोना क्षमताओं है। इस पर पाबंदी लगनी चाहिए। नहीं तो वैक्सीन लेने जाने वाले स्वभाव भी वापस लौट आएंगे।

लोग बेगपरवाह हो गए हैं। खुद ही वायरस का स्रोत बन गए हैं। इस चेन को तोड़ने के लिए बॉयो बबल मेकिंग विल। विज्ञान की भाषा में कहें तो इसका मतलब किसी के साथ संपर्क में नहीं आना, संपर्क में आना भी तो पूरे तरह से सैनिटरीज़ के साथ, ताकि कंटेनीमेशन नहीं हो। इस साल सरकार सख्ती नहीं दिखा रही है। इसी कारण से बम ब्लास्ट हुआ है। इससे बचने के तीन रास्ते हैं। कोविड प्रोटोकॉल को सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, पूर्ण लॉकडाउन होना चाहिए। सभी का वैक्सीनेशन होना चाहिए। जब एक करोड़ लोग मर जाएंगे तो अर्थव्यवस्था को बचाकर क्या करना होगा।

वायरस एक ऐसा पार्टिकल है, जो इन एक्टिव पार्टिकल होता है। डस्ट पार्टिकल जैसा होता है। जो कहीं न कहीं बैठा होता है। जब शरीर के सेल में पहुंचता है तो सक्रिय हो जाता है। अगर हम हाइप्रोक्लोरॉयड यानी ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करते हैं तो उस वायरस के डीएनए को निष्क्रिय कर देते हैं। जैसे ब्लीचिंग पाउडर कपड़े पर गिरता है तो कपड़े का रंग उड़ जाता है। उसी तरह अलकोहल की वजह से वायरस डिहाइड्र होता है कि उसे कर कर देता है। यानी उसका पानी खत्म हो जाता है और वायरस निष्क्रिय हो जाता है।
– डॉ। जीएल शर्मा, पूर्व शेफ साइंटिस्ट बॉयोमेडिकल साइंस बीयू झूठा

स्थिति यह है कि जब लोग ठीक हो रहे हैं तब सरकारी व्यवस्था सक्रिय हो रही है। सोशल डिस्टेंसिंग भी महज एक दिखावा है। सेविका कई घरों में काम कर रही हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। एमसीडी व दिल्ली सरकार ऑक्सीकरण तक उपलब्ध कराने में विफल रहा है। जब भी उन्हें आक्सीमीटर की मांग की जाती है तो टका सा जवाब होता है कि नहीं है।
– मधुलिका गुप्ता, लेबोरेट्री टेक्नोजिस्ट

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