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लापरवाही : कोरोना यूं ही नहीं मचा रहा देश में तबाही, जानिए आखिर कहां हो गई चूक

by Sneha Shukla

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली

द्वारा प्रकाशित: संजीव कुमार झा
Updated Sat, 08 मई 2021 12:58 AM IST

सार

देश में अब तक 2 करोड़ से अधिक रोगी कोरोना से भिन्न हो चुके हैं वहीं सवा दो लाख से अधिक की जान जा चुकी है।

ख़बर सुनना

देश में कोरोना का कहर आया दिन बढ़ता ही जा रहा है। अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतार लगी है और लोग असहाय दिख रहे हैं। मदद के लिए सोशल मीडिया से लेकर हर स्तर पर हाथ फैला रहे हैं लेकिन कई मरीजों को या तो कालाबाजारी का सामना करना पड़ रहा है तो नहीं जान जानवानी पड़ रही है। देश में अब तक 2 करोड़ से अधिक रोगी कोरोना से भिन्न हो चुके हैं वहीं सवा दो लाख से अधिक की जान जा चुकी है। वहीं इन सब के बीच देश में औसतन रोजाना 3 लाख 78 हजार मामले रोज आ रहे हैं। चलिए अंत में जानते हैं कि सरकार से कहां चूक हो गई जिससे देश को इस तबाही का सामना करना पड़ रहा है …

पहला डिफ़ॉल्ट
मार्च के शुरू में यानी कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने से पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने एलान कर दिया कि भारत में कोरोना अंतिम स्थिति में है और हमलोग इसपर लगभग जीत हासिल कर ली है। कोरोना के नए प्रकार आने के बावजूद भारत सरकार की तरफ से दिखाने की कोशिश की गई कि कोरोना को हराने में सरकार की रणनीति बिल्कुल सही है।

दूसरा डिफ़ॉल्ट
भारत सरकार की तरफ से ये बात फैलाई गई कि देश में ज्यादातर लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो गई है लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में केवल 21 फीसदी लोगों में कोरोना के प्रति कृषि विकसित पाया गया है। बता दें कि हर्ड इम्युनिटी का मतलब यह हुआ कि अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संदिग्ध लोगों की सहायता करती है। जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो बीमारी से इम्यून हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं और दूसरे रोगियों की मदद करते हैं।

तीसरी चूक
सुपरस्प्रेडर घटनाओं के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक त्योहारों को आगे बढ़ने की अनुमति दी। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए विशाल राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया। इन सब के अलावा कोरोना प्रबंधन में ढील दे दी गई और लोग बिना पूछे के ही सड़कों पर घूमने लगे।

चौथा डिफ़ॉल्ट
मामला कम होने के बाद सरकार को लगा कि कोरोना लगभग समाप्त के कगार पर है इसलिए टीकाकरण अभियान की शुरुआत को धीमा कर दिया गया जिसके तहत केवल 2 प्रतिशत से कम लोगों को ही टीका लगाया गया। केंद्रीय स्तर पर भारत की टीकाकरण योजना उतनी प्रभावी नहीं दिखी।

पांचवी चूक
सरकार ने राज्यों के साथ नीति में बदलाव पर चर्चा की बिना अचानक से कई फैसले लिए जिससे व्यवस्थाएँ चरमरा गईं। कई राज्यों को अभी भी पर्याप्त संख्या में वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। वैक्सीन खुराक के लिए एक बाजार बनाने में असफल होना जिससे राज्यों और अस्पताल प्रणालियों के बीच प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हुई।

छत्तीस डिफ़ॉल्ट
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य को मामलों में अचानक वृद्धि का अंदाजा नहीं था और न ही उन्होंने इसका सामना करने की कोई तैयारी नहीं की। इसी कारण से मरीजों की संख्या में अचानक तेजी से वृद्धि होने के कारण स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चरमरा गई और अस्पतालों में बेड की कमी हो गई।

सातवीं चूक
देश में 24918 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से केवल 3278 केंद्र ही मानकों के मुताबिक़ स्थापित हैं और केवल 8514 केंद्र की 24 घंटे संचालित होते हैं ।भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर होने की बजाय खराब होती रही है। 31 मार्च 2019 की स्थिति में भारत में 234220 एएनएम कार्यरत थे। एक साल बाद 31 मार्च 2020 को यह संख्या कम होने के साथ 212593 रह गई, लगभग पचास लाख एएनएम कर्मी कम हो गए। यानी कहा जाए तो देश में डॉक्टरों की भारी कमी है।

सरकार को उठाने के ठोस कदम होंगे
भारत सरकार को अब ठोस रणनीति सबसे पहले राज्य सरकार से बात कर शहर से लेकर गांव तक स्वास्थ्य व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी होंगी। इसके बाद अन्य देशों की सरकार से बात करके वैक्सीन की आपूर्ति में तेजी लानी होगी। देश में टीकाकरण अभियान को और तेज करने की जरूरत है। सिर्फ शहर में ही नहीं गांव में भी एसएम स्थापित करने होंगे ताकि यह बड़े पैमाने पर फैलने से रोका जा सके। हर शहर में ऑक्सीजन प्लांट लगाने होंगे ताकि आने वाले समय में इन मुश्किलों से निपटा जाए।

विस्तार

देश में कोरोना का कहर आया दिन उठता ही जा रहा है। अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतार लगी है और लोग असहाय दिख रहे हैं। मदद के लिए सोशल मीडिया से लेकर हर स्तर पर हाथ फैला रहे हैं लेकिन कई मरीजों को या तो कालाबाजारी का सामना करना पड़ रहा है तो नहीं जान जानवानी पड़ रही है। देश में अब तक 2 करोड़ से अधिक रोगी कोरोना से भिन्न हो चुके हैं वहीं सवा दो लाख से अधिक की जान जा चुकी है। वहीं इन सब के बीच देश में औसतन रोजाना 3 लाख 78 हजार मामले रोज आ रहे हैं। चलिए अंत में जानते हैं कि सरकार से कहां चूक हो गई जिससे देश को इस तबाही का सामना करना पड़ रहा है …

पहला डिफ़ॉल्ट

मार्च के शुरू में यानी कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने से पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने एलान कर दिया कि भारत में कोरोना अंतिम स्थिति में है और हमलोग इसपर लगभग जीत हासिल कर ली है। कोरोना के नए प्रकार आने के बावजूद भारत सरकार की तरफ से दिखाने की कोशिश की गई कि कोरोना को हराने में सरकार की रणनीति बिल्कुल सही है।

दूसरा डिफ़ॉल्ट

भारत सरकार की तरफ से ये बात फैलाई गई कि देश में ज्यादातर लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो गई है लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में केवल 21 फीसदी लोगों में कोरोना के प्रति कृषि विकसित पाया गया है। बता दें कि हर्ड इम्युनिटी का मतलब यह हुआ कि यदि कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संदिग्ध लोगों की सहायता करती है। जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो बीमारी से इम्यून हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं और दूसरे रोगियों की मदद करते हैं।

तीसरी चूक

सुपरस्प्रेडर घटनाओं के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक त्योहारों को आगे बढ़ने की अनुमति दी। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए विशाल राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया। इन सब के अलावा कोरोना प्रबंधन में ढील दे दी गई और लोग बिना पूछे के ही सड़कों पर घूमने लगे।

चौथा डिफ़ॉल्ट

मामला कम होने के बाद सरकार को लगा कि कोरोना लगभग समाप्त के कगार पर है इसलिए टीकाकरण अभियान की शुरुआत को धीमा कर दिया गया जिसके तहत केवल 2 प्रतिशत से कम लोगों को ही टीका लगाया गया। केंद्रीय स्तर पर भारत की टीकाकरण योजना उतनी प्रभावी नहीं दिखी।

पांचवी चूक

सरकार ने राज्यों के साथ नीति में बदलाव पर चर्चा की बिना अचानक से कई फैसले लिए जिससे व्यवस्थाएँ चरमरा गईं। कई राज्यों को अभी भी पर्याप्त संख्या में वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। वैक्सीन खुराक के लिए एक बाजार बनाने में असफल होना जिससे राज्यों और अस्पताल प्रणालियों के बीच प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हुई।

छठी चूक

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य को मामलों में अचानक वृद्धि का अंदाजा नहीं था और न ही उन्होंने इसका सामना करने की कोई तैयारी नहीं की। इसी कारण से मरीजों की संख्या में अचानक तेजी से वृद्धि होने के कारण स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चरमरा गई और अस्पतालों में बेड की कमी हो गई।

सातवीं चूक

देश में 24918 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से केवल 3278 केंद्र ही मानकों के मुताबिक़ स्थापित हैं और केवल 8514 केंद्र की 24 घंटे संचालित होते हैं ।भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर होने की बजाय खराब होती रही है। 31 मार्च 2019 की स्थिति में भारत में 234220 एएनएम कार्यरत थे। एक साल बाद 31 मार्च 2020 को यह संख्या कम होने के साथ 212593 रह गई, लगभग पचास लाख एएनएम कर्मी कम हो गए। यानी कहा जाए तो देश में डॉक्टरों की भारी कमी है।

सरकार को उठाने के ठोस कदम होंगे

भारत सरकार को अब ठोस रणनीति सबसे पहले राज्य सरकार से बात कर शहर से लेकर गांव तक स्वास्थ्य व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी होंगी। इसके बाद अन्य देशों की सरकार से बात करके वैक्सीन की आपूर्ति में तेजी लानी होगी। देश में टीकाकरण अभियान को और तेज करने की जरूरत है। सिर्फ शहर में ही नहीं गांव में भी एसएम स्थापित करने होंगे ताकि यह बड़े पैमाने पर फैलने से रोका जा सके। हर शहर में ऑक्सीजन प्लांट लगाने होंगे ताकि आने वाले समय में इन मुश्किलों से निपटा जाए।

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