Utpreksha Alankar Ke Udaharan :- काले की सौदा सुंदरता बढ़ाने वाले अंग ही अलंकार का लाते हैं तथा अलंकार दो प्रकार का होता है, पहला शब्दालंकार दूसरा अर्थालंकार तथा इन दोनों अलंकारों के कई भेद होते हैं, तो आज के इस लेख में हम अर्थालंकार का एक भेद उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण, एवं उत्प्रेक्षा अलंकार से जुड़ी जानकारियां प्रदान कराने वाले हैं, ताकि आपको इसके विषय में जानकारी प्राप्त हो सके।
यदि आप Utpreksha alankar ka udaharan एवं उत्प्रेक्षा अलंकार के विषय में जानकारियां प्राप्त करना चाहते हैं, कि उत्प्रेक्षा अलंकार क्या होता है, उत्प्रेक्षा अलंकार का कितना प्रकार होता है इत्यादि जानकारियां प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे द्वारा लिखे गए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण – Utpreksha alankar ka udaharan
उत्प्रेक्षा अलंकार के एक नहीं कई अलग-अलग उदाहरण है, परंतु उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण के विषय में चर्चा करने से पूर्व हम आपको उत्प्रेक्षा अलंकार से जुड़ी कुछ जानकारियां प्रदान करना चाहेंगे, ताकि पहले आपको उत्प्रेक्षा अलंकार के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाए, और हमारे द्वारा बताए गए उदाहरणों को पढ़कर आप उत्प्रेक्षा अलंकार को और भी अच्छी तरीके से समझ सकेंगे।
उत्प्रेक्षा अलंकार क्या है ?
उत्प्रेक्षा का अर्थ है यही होता है, कि किसी वस्तु के संभावित रूप की उपेक्षा करना। उपमेय अर्थात प्रस्तुत में उपमान अर्थात प्रस्तुत की संभावना को प्रकट करना ही उत्प्रेक्षा अलंकार कहलाता है, उत्प्रेक्षा अलंकार में लगभग कई स्थानों पर आपको मानो, जानो, जनु, मनु, ज्यों इत्यादि जैसे शब्दों का प्रयोग देखने को या पढ़ने को मिलता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार का अर्थ यदि हम सरल शब्दों में बताना चाहें तो, उपमान के ना होने पर भी उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है, इस परिभाषा को पढ़कर के अवश्य आपको उत्प्रेक्षा अलंकार का अर्थ समझ आ गया होगा।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
जिस प्रकार शब्दालंकार एवं अर्थालंकार के भेद होते हैं ठीक उसी प्रकार उत्प्रेक्षा अलंकार के बीज होते हैं तथा उसके भेदों के भी अलग-अलग परिभाषा होती है और उनका अलग-अलग अर्थ होता है, नीचे हमने उत्प्रेक्षा अलंकार के भेजो एवं उनके बारे में कुछ जानकारियां प्रदान कराई है जो निम्नलिखित है :-
- वस्तुप्रेक्षा अलंकार
- हेतुप्रेक्षा अलंकार
- फलोत्प्प्रेक्षा अलंकार
1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार:- जब किसी काव्य में प्रस्तुत में प्रस्तुत की संभावना दी जाती है तो वहां पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।
2. हेतुप्रेक्षा अलंकार:- किसी काल में यदि कहीं पर हेतु में अहेतु प्रकट होता है, अर्थात किसी कार्य में जब आपको हेतु में अहेतु की संभावना दी जाए तो वहां पर हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है, यदि हम आसान शब्दों में कहें तो इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि जहां पर किसी काल्पनिक कारण को छोड़कर हेतु को माना जाता है, वहां पर हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।
3. फलोत्प्प्रेक्षा अलंकार:- फलोत्प्प्रेक्षा अलंकार मैया होता है कि यदि किसी स्थान पर कोई फल नहीं है, परंतु फिर भी उसी स्थान पर फल को मान लिया जाता है तो ऐसे हालातों में वहां पर फलोत्प्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रचलित उदाहरण
1. उदाहरण:- सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात।
मानहुं नीलमणि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।।
स्पष्टीकरण:- ऊपर दिए गए उदाहरण में या काव्य में भगवान श्री कृष्ण के सामने शरीर पर नील मणि पर्वत पर तथा पीत पट पर प्रातः कालीन धूप की संभावना प्रकट की गई है जिसके कारण से यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
2. उदाहरण:- सिर फट गया उसका वही, मानो अरुण रंग का घोड़ा हो।
स्पष्टीकरण:- ऊपर बताए गए काव्य या उदाहरण में व्यक्ति के सिर को लाल रंग के घोड़े की से समानता दी जा रही है अर्थात उपमेय में उपमान की संभावना दी जा रही है अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
3. उदाहरण:- नेत्र मानव कमल है।
स्पष्टीकरण:-ऊपर दिए गए उदाहरण में नेत्रों की संभावना कोमल से की जा रही है और यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4. उदाहरण:- मोर – मुकुट की चन्द्रिकनु , यौं राजत नँद नन्द ।
मनु ससि सेखर की अकस , किये सेखर सत – चन्द्र ॥
स्पष्टीकरण:- ऊपर बताए के उदाहरण में मयूर के पंख से बने मुकुट की चंद्रिका में सत्य चंद्र की संभावना को प्रकट किया जा रहा है अर्थात उपमेय में उपमान की संभावना दी जा रही है अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
5. उदाहरण:- ले चला साथ मैं तुझको कनक, ज्यों भिच्छुक लेकर स्वर्ण।
स्पष्टीकरण:- ऊपर बताए के उदाहरण में उपमेय उपमान की संभावना की जा रही है तथा उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण ज्यों भी आया हुआ है अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य उदाहरण – Utpreksha Alankar Ke Udaharan
1. फूले कास सकल महि छाई ।
जनु रसा रितु प्रकट बुढ़ाई ॥
2. नील परिधान बीच सुकुमारी खुल रहा था, मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यो बिजली का फूल मेघवन गुलाबी रंग ।।
3. तव पद समता को कोमल,
जन सेत्क इक पांय ॥
4. लता भवन ते प्रकट भए , तेहि अवसर दोउ भाइ ।
निकसे जनु जुग बिमल बिधु , जलज पटल बिलगाई ॥
5. उभय बीच सिय सोहति कैसी । ब्रह्य-जीव बिच माया जैसी ॥
बहुरि कहउँ छबि जस मन बसई | जनु मधु मदन मध्य रति लसई ॥
6. मानो माई घनघन अंतर दामिनी ।
घन दामिनी घन अंतर, शोभित हरि ब्रज भामिनी ॥
7. अर्ध चन्द्र सम सिखर – स्त्रैनि कहुँ यों छबि छाई ।
मानहुँ चन्दन – घौरि धौरि – गृह खौरि लगाई ॥
FAQ’S :-
Q1. उत्प्रेक्षा अलंकार किस अलंकार का भेद है ?
Ans :- उत्प्रेक्षा अलंकार अलंकार का भेद है।
Q2. उत्प्रेक्षा अलंकार के कितने भेद होते हैं ?
Ans :- उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं।
Q3. हास्य रस का उदाहरण
Ans :- हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल, तरबूजे सी खोपड़ी,खरबूजे सी गाल
Q4. करुण रस का उदाहरण बताइए
Ans :- दुःख ही जीवन की कथा रही। क्या कहूँ, आज जो नहीं कहीं।।
Q5. उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण दीजिए
Ans :- सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात। मानहुं नीलमणि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।।
निष्कर्ष:- दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा लिखे गए इस लेख के इसके माध्यम से आपको ( Utpreksha Alankar Ke Udaharan – उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा एवं 30 उदाहरण ) के साथ-साथ उत्प्रेक्षा अलंकार के बारे में भी जानकारी प्राप्त हो चुकी होगी।
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