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ज़कात किन रिश्तेदारों को देनी चाहिए ? – Zakat Kin Rishtedaron Ko Dena Chahiye

by Pritam Yadav

Zakat Kin Rishtedaron Ko Dena Chahiye :- रमजान के महीने में ज़कात देना काफी अव्वल माना गया है। जकात देना हर मुसलमान पर वाजिब है,और जब आप पर जकात फर्ज़ हो जाती है तो आप अपनी माल का ढाई परसेंट निकालते हैं।

जकात निकालने के बाद इंसान के दिमाग में यही खयाल आता है, की अब ये किसको दी जाए, क्युकी जकात को उसकी सही जगह तक पहुंचना भी जकात निकालने वाले की ही जिम्मेदारी होती है।

तो अब हम ये जानते हैं, की जकात किन लोगो को या किन रिश्तेदारों को दी जानी चाहिए। अल्लाह ने सबसे पहला हक इन लोगो का ही रखा है। जिसमे शामिल है :-

  1. रिश्तेदार
  2. मोहल्ले वाले लोग
  3. मिलने जुलने वाले लोग
  4. दोस्त और अहबाब

इन सभी लोगो में से जिसको आपको सबसे ज्यादा जरूरतमंद देखे उनको जकात दे सकते हैं।

अल्लाह ने भी फरमाया है, की सबसे अव्वल सबाब जकात देने का रिश्तेदारों को ही है, क्युकी वो सबसे ज्यादा हकदार होते है। जकात देना बोहोत जरूरी होता है, जकात देने से इंसान के माल की अल्लाह हिफाजत करता है।

परेशान हाल और मुश्किलों में आए होए रिश्तेदारों को जकात देना चाहिए, क्युकी इससे हमे दो फायदे होते है, एक तो आपकी जकात अदा हो जाएगी और दूसरा आपको रिश्तों को जोड़ने का भी सबाब मिलेगा।

जकात अदा करने से पहले हमेशा ये देख लेना चाहिए, की उस इंसान को ही जकात अदा करें, जो ज्यादा जरूरतमंद हो क्युकी फिर वही इसका ज्यादा हकदार होता है और उसी ही जकात दी जाए। अब आगे ये मसला आता है, की कोंसे रिश्तेदारों को जकात दे और किनको नही देनी चाहिए,आइए जानते हैं।


कौ से रिश्तेदारों को जकात नही देनी चाहिए ? – Zakat Kin Rishtedaron Ko Dena Chahiye

जकात निकालने के वक्त सबसे पहला सवाल यही आता है, की किस इंसान को जकात दे और कैसे दे कब दे, अल्लाह ने फरमाया है, की सबसे पहला हक परेशान और जरूरतमंद रिशेतदारो का है, तो अब उसमे आता है, की कौन से रिश्तेदार को से क्युकी हर किसी को तो जकात नही दी जा सकती। कुछ रिश्ते ऐसे हैं, की जिनमे जकात देना वाजिब नहीं है, जैसे –

निकाह का रिश्ता :- बीवी शोहर को जकात नही दे सकती,और शोहर बीवी को जकात नही दे सकता है, क्युकी वो दोनो निकाह में है।

पैदाइश का रिश्ता :- जिनसे हम पैदा है मतलब हमारे मां बाप,चाचा,चाची,दादा,दादी और जिनको हमने पैदा किया है मतलब हमारे बच्चे जैसे बेटा,बेटी,इन में से किसी को भी जकात नही दे सकते है। पोता,पोती,नवासा , नवासी को भी हम जकात नही दे सकते।


कौन से रिश्तेदारों को जकात दे सकते है ?

निकाह और पैदाइश के रिश्तों को छोड़ कर आप किसी भी रिश्ते और रिश्तेदारों को जकात दे सकते हैं, जैसे – बहन, भाई, भतीजा ,भतीजी, भांजा, भांजी, खाला, खालू, फूफा, फूफी और रिश्ते की भाई बहनों को भी आप आराम से जकात दे सकते हैं, लेकिन इसमें भी जिसका सबसे ज्यादा जरूरत हों उसी को देनी चाहिए।


पैदा करने वाल और निकाह में आने वाले लोग को जकात देना माना क्यूं है ?

पैदा करने वाले को और निकाह में आने वालें लोगो को जकात देना माना फरमाया गया है, क्योंकि उसमें जकात देने वाले का अपना ही फायदा होगा।

जैसे की मान लेते हैं, की पैदाइश के रिश्ते मां बेटे, बाप, बेटी इसमें से किसी को भी आपस में जकात देने से सबको आपस में ही फायदा होगा और वो जकात नही मानी जायेगी और अगर बीवी शोहर को या शोहर बीवी को जकात दे तो भी वो नही मानी जाएगी।

क्युकी इन सभी रिश्तों की जिम्मेदारी आपकी होती है, की आप इन सभी रिश्तों को जिम्मेदारी की साथ ले कर चले और जिस रिश्ते में आपकी जिम्मेदारी नहीं है, की आप उनकी देखभाल करेंगे आप उस रिश्तेदारी में ही जकात दे सकते हैं।

जकात की रकम को हमेशा वही देना चाहिए जहा वो रकम आप पर खर्च न हो और न ही आपको उससे कोई फायदा पहुंचे।


अल्लाह की राह में जकात देना

अल्लाह की राह में जकात देना भी एक अव्वल सबाब है, रमजान के इस पाक महीने में जितना हो सके अल्लाह की राह में देना चाहिए।

अल्लाह फरमाता है, की अगर मेरा नाम ले कर कोई राजा भी आता है और कहता है, की अल्लाह की नाम पर दे दो तो उसको अपने हिसाब के मुताबिक देना चाहिए।

हमे रमजानो के अलावा भी अल्लाह की राह में खून देना चाहिए, हदीस से ये बात साबित है, की जकात सदका करने से इंसान पर बड़ी से बड़ी और खतरनाक मुश्किल बिना किसी परेशानी के निकाल जाती है।

हजरत अली ने फरमाया है, की इंसान को अपनी हैसियत के हिसाब से हर रोज सदका निकालना चाहिए क्युकी यही सदका जो वो अल्लाह की राह में खर्च कर रहा है, उसके लिए नेकी का काम करेगा और उसकी हिफाजत फरमाएगा।


ज़कात पकी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है ?

अल्लाह ने फरमाया है, की रिश्तेदारों के बाद जकात आपकी कमाई में से गरीबों और मिस्किनो का हक है। जकात अल्लाह ने इसलिए ही बनाई है, की लोगो के दिलो में गरीबों और मिस्कीनो के लिए प्यार पैदा कर सके, जकात देने से हम अपने माशरे के गरीबों का भला कर सकते हैं।

जकात देते वक्त इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए, की उसी इंसान का इस पर पहला हक है, जो मजबूर है और पैसे से परेशान है। किस गरीब के घर खाने पीने का सामान दे देना चाहिए या फिर उसको नकद पैसे दे देने चाहिए, की वो अपनी निजी जरूरत पूरी कर ले।


Conclusion :

आज के हमारे इस टॉपिक Zakat Kin Rishtedaron Ko Dena Chahiye से हमे ये नतीजा मिलता है, की इंसान को हर हाल में जकात देना चाहिए, क्युकी अल्लाह ने हम सभी मुसलमानों पर जो कमाते है, जकात फर्ज़ की है।

जकात वो रकम होती है, जो हम अपने माल में से ढाई परसेंट निकलते हैं, जैसे किसी की कमाई 100 रुपए है, तो उसका ढाई परसेंट मतलब 2.5 रुपए उसकी जकात निकली जाएगी।

रमजान के महीने में साल भर के माल का हिसाब लगा कर जकात निकालना सबसे अव्वल अमाल माना गया है, कुरान मजीद में अल्लाह ने फरमाया है, की ज़कात आपकी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।

अल्लाह हम सब को नेक काम करने की तौफीक आता फरमाए

आमीन सुममा आमीन।


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