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Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye

महाकाव्य की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए​ ?

by Pritam Yadav

Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye :- भारतीय काव्यशास्त्र सभी मनुष्यों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि काव्य शास्त्रों के द्वारा मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।

काव्यशास्त्र के कई भाग होते हैं, जिनमें से दो काव्य महाकाव्य और खंडकाव्य है। और अक्सर लोगों काव्यशास्त्र के अन्य प्रकार तो पढ़ते हैं परंतु महाकाव्यों के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है जबकि महाकाव्य एक महत्वपूर्ण पद्य है।

कई बार यह प्रश्न विद्यार्थियों द्वारा पूछे जाते हैं, कि Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye. इसलिए आज के इस लेख में हम महाकाव्य के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दे रहे हैं।


महाकाव्य किसे कहते हैं ? | Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye 

एक महाकाव्य लंबी एवं कथात्मक कविता होती है। इन कविताओं में जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं एवं जीवन की समग्रता का कलात्मक ढंग से वर्णन किया गया है। शब्द महाकाव्य प्राचीन ग्रीक शब्द एपोस से लिया गया है, जिसका अर्थ है कहानी, शब्द और कविता। कई विद्वानों ने इसे अपने देश एवं भाषाओं के हिसाब से प्रकाश डालने की कोशिश की है।

महाकाव्य का शाब्दिक अर्थ महान काव्य है। यानी कि ऐसी कविता जिसे कथा त्मक रूप से प्रदर्शित किया गया हो और वह उद्देश्य, शैली तथा भाषा के दृष्टिकोण से महान हो, महाकाव्य कहलाता है।

सर्वप्रथम वाल्मीकि जी ने रामायण में महाकाव्य के लक्षण प्रदर्शित किए हैं। उसके बाद स्वामी व्यास ने गीता में महाकाव्य को दर्शाया है।

संस्कृत काव्यशास्त्र का ही भाग महाकाव्य है। आचार्य भामह ने ही महाकाव्य का प्रथम सूत्रबद्ध लक्षण प्रस्तुत किया था। फिर बाद में अलग-अलग आचार्य ने अलग अलग तरीके से महाकाव्य के लक्षण को प्रस्तुत किया।


महाकाव्य की विशेषताएं

  • महाकाव्य की लेखन शैली संस्कृत में है।
  • महाकाव्य में नायक की विशेषताओं का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है। साथ ही इसमें नायक की बहादुरी और संकल्प भी विस्तार पूर्वक दिखाए गए हैं।
  • महाकाव्य में ऐसी बाधाएं और परिस्थितियों को दर्शाया गया है जो अलौकिक हैं और इन बाधाओं को महाकाव्य के नायक ने पार किया है। इसके साथ ही यह परिस्थितियां सामान्य मनुष्यों को भी प्रेरणा प्रदान करती है।
  • महाकाव्यों में किसी सभ्यता और संस्कृति की भविष्य को भी दर्शाया गया है।

महाकाव्य की परिभाषा उदाहरण सहित ( Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye  )

महाकाव्य की परिभाषा आचार्यों द्वारा दी गई है जिनमें से कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैं:-

काव्यालंकार में आचार्य भामह के अनुसार महाकाव्य की परिभाषा, “महाकाव्य सर्गबद्ध और महानता का महान प्रकाशक होता है। महाकाव्य में अलंकार, सद वस्तु और निर्दोष शब्दार्थ होने चाहिए। महाकाव्य में पांच संधियां दूत, युद्ध, विचार विमर्श, प्रयाण, नायक का अभ्युदय हो।

महाकाव्य उत्कर्ष युक्त हो, चतुर वर्ग आदेश होने पर भी प्रधान अतः अर्थ उपदिष्ट, सभी रसों का पृथक चित्रण हो एवं लोगों के स्वभाव का वर्णन हो, बहुत गुढ ना हो। नायक के कुल बल शास्त्र ज्ञान आदि का उत्कर्ष जताकर और किसी के उत्कर्ष के लिए नायक का वध नहीं करना चाहिए।”

काव्यादर्श में आचार्य दंडी के द्वारा दी गई महाकाव्य की परिभाषा, “महाकाव्य वह है जिसका कथानक इतिहास सम्मत अथवा प्रसिद्ध कथानक हो, जिसका नायक चतुर तथा उदात्त हो, जो विविध अलंकारों तथा रसों से पूर्ण हो, वृहद तथा पंच संधियों से युक्त हो।”


महाकाव्य के उदाहरण

रामायण सबसे प्रथम महाकाव्य है जिसे वाल्मीकि जी द्वारा लिखा गया था। इसमें श्री राम जी की कथा बताई गई है। इस महाकाव्य के नायक श्री राम है। और इस महाकाव्य को आदि काव्य कहा जाता है।

साथ ही वाल्मीकि जी को आदि कवि कहा जाता है। यह भारत का सबसे लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है। इसमें 7 अध्याय हैं जिन्हें हम कांड के नाम से जानते हैं।

महाभारत महाकाव्य का दूसरा उदाहरण है। यह संस्कृत में रचित एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है। कई विद्वानों द्वारा बताया जाता है कि यह 400 ईसा पूर्व लिखा गया काव्य है परंतु कुछ विद्वानों के द्वारा कहा जाता है कि इसकी विषय वस्तु हजारों साल पुरानी है।

यानी कि यह काव्य आठवीं या नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया है। इसमें 200000 से भी अधिक पंक्तियां हैं और यह अब तक का लिखा गया सबसे लंबा महाकाव्य माना जाता है। इस महाकाव्य में कविताओं के साथ गद्य भी शामिल है।

रामायण एवं महाभारत के अलावा अन्य भी महाकाव्य है जो अलग-अलग आचार्यों द्वारा लिखे गए हैं। इन में से कुछ महाकाव्यों को मिलाकर पंच महाकाव्य भी बनता है।

यह पंच महाकाव्य कालिदास द्वारा रचित रघुवंश और कुमारसंभव, भास द्वारा रचित कर्णभारम, माघ द्वारा रचित शिशुपाल वध और श्रीहर्ष द्वारा नैषधचरित है।


महाकाव्य के लक्षण

आचार्य विश्वनाथ के द्वारा महाकाव्य के कुछ लक्षण बताए गए हैं जो कि इस प्रकार हैं:-

कथानक महाकाव्य का पहला लक्षण यह है कि इसके अंदर बताई गई कथानक ऐतिहासिक और इतिहास शासित होनी चाहिए।

विस्तार महाकाव्य में बताई गई कथा जीवन के अलग-अलग रूपों का वर्णन करता है। इसलिए आचार्य विश्वनाथ कहते हैं कि महाकाव्य के अंदर राजनीतिक, प्राकृतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों का वर्णन विस्तार पूर्वक किया जाना चाहिए। जिसके माध्यम से मानव जीवन का पूर्ण चित्र जैसे – विस्तार, वैभव एवं वैचित्र्य प्रदर्शित हो सके।

विन्यास विन्यास में कथानक की रचना नाट्य संधियों के नियम से भरी हुई हैं। और महाकाव्य की कथा एवं अन्य प्रकरणों का पारस्परिक संबंध उप कार्य उप-कारक भाव से होना चाहिए।

नायक किसी भी महाकाव्य में नायक क्षत्रिय होना चाहिए जिसका चरित्र अनेक गुणों से भरपूर हो। जैसे- नायक अत्यंत गंभीर, क्षमावाणी, दृढ़व्रत, निर्गुण, अहंकारवान इत्यादि होना चाहिए।

रस महाकाव्य में लिखी हुई कविताओं में अलग-अलग प्रकार के रस जैसे- श्रृंगार, वीर, शांत, करुण, हास्य इत्यादि रस होने चाहिए।

फल महाकाव्य साथ व्रत वाला होना चाहिए। अर्थात इस की प्रवृत्ति शिव और सत्य की ओर हो और इसका उद्देश्य चतुर वर्ग की प्राप्ति हो।

शैली आचार्य ने महाकाव्य की शैली संस्कृत बताई है क्योंकि इसके द्वारा अत्यंत स्थल रेडियो का उल्लेख किया जा सकता है। इसके अलावा महाकाव्य की शैली श्रव्य वृत्तों से अलंकृत, महाप्राण, नानावर्णन क्षमा होनी चाहिए।


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निष्कर्ष :

आज के इस लेख में हम ने आपके सबसे अच्छे सवाल Mahakavya Ki Paribhasha Udaharan Sahit Likhiye का जवाब दिया है। उम्मीद है कि इस लेख की मदद से आपको महाकाव्य के बारे में उचित जानकारी प्राप्त हो गई होगी।

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FAQ :

प्रश्न 1महाकाव्य कौनकौन से हैं ?

उत्तर - रामायण, महाभारत, बुद्धचरित, कुमारसंभव, रघुवंश, शिशुपाल वध, नैषधीयचरित, इत्यादि संस्कृत के महाकाव्य है।

प्रश्न 2महाकाव्य का उद्देश्य क्या है ?

उत्तर - महाकाव्य का उद्देश्य मनुष्यों को धर्म, अर्थ, काम क्रोध लोभ से मोक्ष की प्राप्ति कराना है।

प्रश्न 3महाकाव्य कितने होते हैं ?

उत्तर - महाकाव्य कई प्रकार के होते हैं जैसे संस्कृत के महाकाव्य, प्राकृत अपभ्रंश के महाकाव्य, हिंदी के महाकाव्य, तमिल के महाकाव्य।

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